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बस के सफ़र में पहला सेक्स सफ़र - Bus Ka Safar

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नमस्ते दोस्तो ! मेरा नाम नयन है, अब मेरी उम्र ३१ साल है पर बात तब की है जब मैं अट्ठारह साल का था। मैं दसवी में पढ़ रहा था।

मेरे बाजू वाले घर में वीणा रहती थी। हमारा उनके यहाँ आना जाना तो था, थोड़ी मस्ती भी करता था पर गलत इरादे न उसके थे न मेरे थे।

मुझे मेरे मामा के घर जाना था। गाँव का नाम बताना यहाँ ठीक नहीं होगा लेकिन रात भर का सफ़र था, वीणा को भी गाँव जाना था, उनके बच्चे छुट्टियों में गाँव गए थे उनको वापस मुंबई लाना था। उनका गाँव मेर मामा से गांव से नजदीक था तो वो भी मेरे साथ आने को निकल पड़ी। अब उनको भी अकेले जाने से अच्छा था कि मेरे साथ जाये !

बस में भरी भीड़ थी छुट्टियाँ जो थी। हमें मुश्किल से पीछे वाली दो सीट मिली, सामान रखने की भी जगह नहीं थी। तो वीणा ने अपनी सूटकेस अपने पाँव के नीचे रख लिया। मैं खिड़की के साथ में बैठा था। बस निकल पड़ी अपने मुकाम की तरफ।

रात के १० बजे होंगे जब हम निकले। टिकट कटवाने के बाद बस की लाइट बंद हो गई और कब नींद आई पता ही नहीं चला।

नींद में ही मेरे हाथ साथ में बैठी वीणा को लगा और मेरी नींद खुल गई। वीणा की साड़ी कमर तक ऊपर आ गई थी। मैंने ध्यान से देखा तो पता चला कि सूटकेस रखने की जगह नहीं होने के कारण उन्होंने जो सूटकेस अपने पैरो के नीचे रखा था उस वजह से उनके पैर ऊपर हो गए थे और साड़ी फिसल के कमर तक आ गई थी। अब मेरी हालत देखने लायक थी। क्या करूँ समझ में नहीं आ रहा था।

तो मैंने भी नींद में होने का नाटक किया और धीरे धीरे मैं उनको हाथ लगाने की कोशिश करने लगा। डर तो बहुत लग रहा था कि कहीं उनकी नींद न खुल जाए। लेकिन जो आग मेरे अन्दर भड़कने लगी थी वो मुझे शांत कहाँ बैठने दे रही थी, तो मैंने भी नींद का नाटक कर के अपना हाथ चलाना चालू रखा। अब मेरा हाथ धीरे धीरे उनकी पैन्टी को छूने लगा था। मेरी नजर हमेशा यही देख रही थी कि कहीं वो नींद से न जग जाय।

बस में काफी अँधेरा था और मैं एक नई रोशनी ढूंढ रहा था। मेरा हाथ अब उनकी जांघों पे फिसल रहा था। इतने में उन्होंने अपना सर मेरे कंधे पे रख दिया। मेरी तो डर के मारे जान ही निकल गई। मुझे लगा कि वो जग गई लेकिन वो तो गहरी नींद में थी। अब मैं थोड़ी देर वैसे ही रुका रहा।

लेकिन इस चक्कर में हम दोनों में जो दूरी थी वो और कम हो गई और इसको मैंने ऊपर वाले की मेहरबानी समझा। अब मेरी हिम्मत बढ़ने लगी थी और मेरा हाथ अब थोड़ी और सफाई से चलने लगा था लेकिन फिर भी सम्भाल के जांघों पे हाथ फेरने के बाद अब मैंने धीरे से उनकी पैन्टी में हाथ घुसाया। बाल तो एकदम साफ किये हुए थे। अब मैं उनकी चूत को धीरे धीरे सहलाने लगा लेकिन एकदम संभल के।

थोड़ी ही देर में उनके बदन से अजीब सी खुशबू आने लगी थी और मेरी उंगली गीली हो गई थी, उनकी चूत अब पानी छोड़ने लगी थी। अब मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि वो सच में सोई है या उनकी नींद खुल गई है। लेकिन एक बात तो ध्यान में आ गई थी कि कोई भी औरत इतना सब करने के बाद भी सो नहीं सकती। अब मेरी हिम्मत तो बढ़ गई थी लेकिन मन में डर अब भी था .कही ओ सच में सोई हुई तो नहीं .लेकिन अब रुकना मेरे बस में नहीं था सो मिने भी सोचा जब उठ जायेगी तब देख लेंगे .वासना पे किसी का जोर नहीं चलता.

मैंने हिम्मत की और एक हाथ से उनकी चुत में उंगली करना चालू रखा,और दूसरा हाथ उनकी चूची की तरफ बढाया और धीरे से उन्हें मसलना चालू किया .मेरी जिंदगी का ये पहला अनुभव था और इतनी आसानी से मौका मिलेगा ये मैंने सोचा भी नहीं था .उनकी हलचल तो बढ़ गई थी लेकिन ओ आँखे खोलने को तैयार नहीं थी .शायद अब उनको पानी निकल ने को था .तो मैंने भी मेरी उंगली की रफ्तार बढाई.और उन्होंने मेरी उंगली को अपनी चुत की फाको से दबा क रखा .शायद ओ शांत हो गई थी .लेकिन मेरा तो लंड एकदम ताना हुवा था .क्या करू समाज में नहीं आ रहा था .मैंने उनका हाथ उठाया और मेरी चैन खोल के लंड को बहार निकला और उनके हाथ में दे दिया .लेकिन ओ कुछ भी करने को तैयार नहीं थी .तो मैंने फिर से उनकी चूची को दबाना चालू किया.चुत में उंगली भी डालना चालू रखा .पर कुछ फायदा नहीं हुआ।

पूरी रात निकल गई जाने कितने बार ओ झड़ गई थी पर मेरे लंड से पानी नहीं निकला था .अब मेरे लंड में दर्द शुरू हो गया था .तो मैंने अपने हाथ से ही धीरे धीरे लंड हिलाना चालू किया ३-४ बार ही हिलाया था के मेरा भी पानी निकल गया.फिर नींद कब लग गई पता ही नहीं चला .सुबह ८ बजे गाड़ी हमारे गाव में पहुच गई .वीणा ने मुझे उठाया और हम बस से उतर गए ,यहाँ से हमारे रस्ते अलग होने थे.मुझे बड़ा दुःख हो रहा था .के जिंदगी का पहला सेक्स अनुभव और ओ भी अधुरा ही रह गया .मैं देख रहा था क उनके चहरे पे कोई भावः नहीं था .मैंने रत को उन के साथ कुछ किया हो ऐसा कुछ भी नहीं जाता रही थी. जैसे कुछ हुवा ही नहीं .................मैं उदास था. के अब मुझे अपने मामा के यहाँ जाना था और ओ अपने बच्चो को ले के वापस मुंबई जायेगी।

लेकिन एक बात तय थी ओ सोई नहीं थी सोने का नाटक कर रही थी.और मुझे इस बात की ख़ुशी थी के आज भले ही मैं कुछ नहीं कर सका लेकिन मैं जब वापस मुंबई जाऊंगा तो शायद मेरा कम बन जाये .....और मैं जिंदगी का पहला सेक्स वीणा के साथ ही करूँगा।

आगे की कहानी दुसरे किसी दिन बताऊंगा अगर आप को मेरी आगे की कहानी जाननी है
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पढ़ाई के बहाने चुदाई - Padhai Ke Bahane Chudai





मैं मुकेश, मेरे प्रिय पाठकों और पाठिकाओं को मेरे लंड का नमस्कार।

मैं जिस लड़की के बारे में बताने जा रहा हूँ, उसका नाम सपना है। उसका कद करीब ५.३" है । रंग थोड़ा सांवला है और उसके मम्मे करीब ३४" के होंगे और उसके गांड करीब ३८" की होगी और उसकी पतली कमर अगर उसे कोई देख ले तो उसका लण्ड कड़क हो जाए।

बात उन दिनों की है जब मैं पटना(बिहार) के कोचिंग में पढ़ाया करता था, वो मेरे कोचिंग में पढ़ती थी। वो एक अमीर घराने की माडर्न ख्याल की लड़की थी, इसीलिए छोटे छोटे और पारदर्शक कपड़े पहन कर आती थी जिससे देख सभी लड़के उस पर फ़िदा रहते थे। गुरु होने के कारण मैंने वैसे तो कभी उसे उस नजरिये से कभी नहीं देखा था पर उस दिन बात ही कुछ ऐसी हो गई।

मैं आपको बताना भूल गया कि उसे बार-बार बेहोश होने की बीमारी थी। वो रविवार का दिन था और कोचिंग की छुट्टी थी पर उसे गणित में कुछ प्रोबलम होने के कारण उसने मुझसे अकेले में पढ़ाने को कहा था। वो ठीक १० बजे मेरे कोचिंग में आ गई, और हमने पढ़ाई शुरू कर दी। मैं उसे पढ़ा ही रहा था कि इतने में वो बेहोश हो गई। मैं उसके मुँह पे पानी के छींटे मार रहा था उसे होश में लाने के लिए। इस बीच मेरी नज़र उसके मम्मे पर चली गई। पानी और पारदर्शक कपड़े होने के कारण उसके मम्मे गीले हो गए जिस कारण वो पूरे साफ़ साफ़ दिख रहे थे। मैं न चाहते भी उसके मम्मे दबाने लगा। उसके बाद मैंने उसके टॉप के अन्दर हाथ डाल दिया और उसे मसलने लगा और उसके होठों पे अपने होंठ रख कर चूसने लगा। इतने में वो होश में आ गई और हल्का सा मेरा विरोध करने लगी पर उसके बाद वो भी गरम हो गई।

मेरा भी लंड अन्दर ही पैंट फाड़ने लगा और उसने अपने हाथों से मसलना शुरू कर दिया। करीब १० मिनट की चुम्मा-चट्टी के बाद वो पूरी गर्म हो गई और मेरे कपड़े उतारने लगी। मैंने भी देर ना करते हुए उसके कपड़े उतार दिए और थोड़े ही समय में दोनों पूरे नंगे हो गए। वह घुटने के बल बैठ गई और मेरा लंड चूसने लगी और मैं उसके मम्मे दबा रहा था। फिर मैंने उसे मेज़ पर लेटा दिया और उसकी संगमरमरी चूत अपनी जीभ से चाटने लगा। उसकी चूत एकदम कसी और वह अनचुदी कलि थी। वह सिस्कारियां भर रही थी और इतने में वह झड़ चुकी थी। मैंने उसके अमृत-रस को चाट कर साफ़ कर दिया।

थोड़ी देर में वो फिर से गरम हो गई और तड़पने लगी। फिर मैंने उसे ज्यादा न तड़पाते हुए उसकी टाँगे मेज़ पर फैलाई और अपना लंड उसकी बुर पे रख दिया। लंड अन्दर नहीं जा रहा था इसलिए मैंने वैसलिन लगाया और धीरे धीरे अन्दर डालने लगा। लंड धीरे धीरे अन्दर चला गया और वह दर्द से तड़पने लगी। मैंने और जोर लगाया तो उसकी बुर से थोड़ा खून निकला और दर्द के मारे तड़पने लगी .....आआआ... ऊउम्म्म्म्म्म्म्म.... येस्स्स्स.....ये सब आवाजें निकलने लगी।

मैं थोड़ा रुका और उसके होंठ चूसने लगा। थोड़ी देर बाद उसका दर्द कम हुआ और नीचे से वह गांड उठा उठा कर चुदवाने लगी। मैंने भी तब फिर से उसे चोदना चालू कर दिया और करीब १५ मिनट की चुदाई के बाद हम दोनों एकसाथ झड़ गए।

उस दिन मैंने उसे दो बार और चोदा। अब हमें जब भी वक्त मिलता है तो हम पढ़ाई के बहाने चुदाई किया करते हैं।

मेरे प्रिय पाठको, यह मेरी पहली कहानी है इसलिए जो भी गलती हुई उसके लिए माफ़ करियेगा और आपको अगर कहानी अच्छी लगी तो मुझे मेल कीजिये। आपके इ मेल्स मेरे लिए प्रेरणा-स्रोत का काम करेंगे तो मेल करने में कंजूसी न करें।
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काला हीरा - Kala Hira




मैं एक बार फिर आप लोगों के सामने आया हूँ अपनी नई कहानी के साथ। मेरी पहले की कहानी " कुंवारी छोकरी " और " विदेशी माल " को आप लोगों ने बहुत पसंद किया, उससे मुझे बहुत ख़ुशी हुई। आशा है आप लोग मेरी यह कहानी भी पसंद करेंगे। तो सभी लड़कियों और लड़कों से कहना है कि अपने-अपने औजार संभाल लें क्योंकि मैं कहानी शुरू करता हूँ।

दो महीने पहले की बात है जब मेरे इलाके में कोई सरकारी टीचर अपने परिवार के साथ रहने आये। सब उन्हें मिश्रा जी कहते थे। उनके परिवार में उनकी पत्नी और उनकी एक बेटी थी। हम सब दोस्त अपने घर के बाहर बाते कर रहे थे कि अचानक मिश्राजी ने हम सभी को सामान घर के अन्दर रखने के लिए मदद मांगी। हम सबने जाकर उनकी मदद की। जब वापस आ रहे थे तो उनकी बेटी ने मुझे कुछ अलग नजरों से देखा तो मैं समझ गया कि वह मुझ पर फिदा हो गई है। पर मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया। अब जब भी मैं घर के बाहर रहता तो वह मुझे देखकर मुस्कुराती रहती, मैं अनदेखा कर देता। आप सभी लोग सोच रहे होंगे कि मैं ऐसा क्यों करता था। उसकी वजह थी उसका रंग। वह बिलकुल काली थी। उसका नाम सोनी था। ( बदला हुआ नाम )

अब मैं उसके बारे में बताता हूँ की वह कैसी थी। वह बिल्कुल काली थी पर उसकी फिगर बहुत ही सेक्सी थी। उसकी उम्र १८ साल की होगी। उसकी चूची ज्यादा बड़ी नहीं थी। यह सब कुछ दिनों तक चला तो दोस्तों ने मुझे चिड़ाना शुरू कर दिया था। मैंने उन्हें बताया कि ऐसा कुछ नहीं है तो दोस्तों ने कहा कि उससे तुझे क्या लेना है, अगर वह आती है तो आने दो ! काम होने पर चलता करना !

मुझे उनकी बातें शुरू में अच्छी नहीं लगी फिर मैंने सोचा कि इसमें हर्ज़ ही क्या है। मैंने भी दाना डालना शुरू कर दिया। यह सब देख कर उसे बहुत अच्छा लग रहा था। यह सब कुछ दिनों तक चला तो मेरे दोस्तों ने मुझसे पूछना शुरू कर दिया कि कुछ किया भी या ऐसे ही चल रहा है। उन्होंने कहा कि कुछ कर यार।

बातों ही बातों में एक बार सोनी ने बताया कि मैं दो बार चुदवा चुकी हूँ।

मैंने कहा- तब मुझे कब खिला रही हो?

उसने कहा- चार दिन बाद मेरी माँ अपनी किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी में जा रही है, मुझे भी साथ ले जा रही थी पर मैं पढाई का बहाना बनाकर नहीं जा रही हूँ। पापा भी स्कूल चले जाते हैं। तुम मेरे घर आना, मैं तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद का खाना बनूंगी(बनाऊँगी)।

मैं उसका मतलब समझ चुका था। उस दिन जैसे ही उसके पापा घर से बाहर गए, वो घर से बाहर आकर मुझे घर के अन्दर आने के लिए इशारा कर गई। मैं भी मौका देख कर उसके घर के अन्दर चला गया।

घर के अन्दर जाते ही उसने मुझे बिठाया और किचन में चली गई वहाँ से उसने मुझे खीर लाकर दी। वो मुझे अपने हाथों से खीर खिलाने लगी, मैं भी खीर खा रहा था और बस उसे ही देखे जा रहा था। वह भी मेरे आँखों में देखती जा रही थी।

मैंने कहा- अब मैं तुम्हें खिलाऊंगा ! उससे चम्मच लेकर मैं उसे खिलाने लगा। खिलाते-खिलाते उसके मुंह के बजाय उसके कपड़ों के अन्दर खीर डाल दी। वह उठकर दूसरे कमरे में चली गई। मैं समझ गया कि वह कपड़े बदलने गई है, मैं भी उसके पीछे जाकर उसे देखने लगा। मैंने देखा कि वह केवल सफेद ब्रा में ही है। मैंने कुछ हिम्मत करके उसे पीछे से पकड़ लिया। वह कुछ घबराई और कहने लगी- आज नहीं फिर कभी !

मैंने कहा- आज नहीं तो कभी नहीं।

कहते हुए मैं उसके गले पर चूमने लगा। वह नहीं-नहीं कहे जा रही थी। पर मैं कुछ और इरादा कर के आया था। मैं बस लगा रहा। मैं उसे पीछे से ही पागलों की तरह चूमने लगा। धीरे-धीरे उसकी ब्रा क हुक भी खोल दिया और पीछे से ही उसके दोनों चुचियों को पहले धीरे-धीरे फिर बाद में उसे कस-कस कर मसलने लगा। उसकी मुंह से सी....... सी ................. की आवाजें निकलने लगी।

मैं समझ गया कि वह भी गरम हो चुकी है। मैं बस चुम्बन लिये जा रहा था और उसकी चुचियों को मसले जा रहा था।

अचानक उसने मेरे खड़े लण्ड को हाथ पीछे करके पकड़ लिया। मुझे अजीब सा लगा। मैंने उसका मुंह अपनी ओर किया और उसे किस करने लगा। उसके होंठों को अपने होंठों से जोरदार किस किये जा रहा था। वह बिल्कुल पागल सी हो गई थी। वह अपने घुटनों पर बैठ कर मेरे लण्ड को आगे पीछे करने लगी। मैंने उसे अपने मुंह में लेने के लिए कहा तो उसने मुंह में ले लिया और चाटने लगी। जब वो अपने फ़ूल से कोमल होंठो मेरे लण्ड को चाट रही थी तो मेरे तन बदन में मानो आग सी लग रही थी।

मैंने कहा- अब मेरी बारी है !

मैंने फट से उसे नंगा कर दिया और उसे बिस्तर पर लिटा कर उसकी बुर को देखा तो एक दम चौंक गया, पूरा बदन काला था मगर उसकी बुर लाल नज़र आ रही थी। बुर पर एक भी बाल नहीं था। शायद उसे पता था कि मैं जब आऊंगा तो उसे जरुर ही चोदूंगा, इसलिए वह पूरी तरह से तैयार थी। जैसे ही उसकी बुर को करीब से देख रहा था तो मानो उसकी बुर काँप रही हो। जब मैंने उसकी बुर पर अपनी जीभ लगाई तो उसके बदन में हलचल से हो गई।

अब मैं उसकी कोमल बुर को धीरे-धीरे चाट रहा था। उसकी आवाज़ में एक कम्पन्न सी हो रही थी। बुर-रस और मेरे थूक से उसकी बुर एक दम गीली हो गई थी। मेरा लण्ड भी कब तक इंतज़ार करता, वह कह रहा था कि मुझे भी जन्नत की सैर करनी है।

जब मैंने अपना लण्ड को उसकी बुर पर रखा और अन्दर डालना चाहा तो अन्दर नहीं जा रहा था। यह देखकर मैं चौंक गया कि उसकी बुर एक दम टाइट थी। मैंने कहा- अरे तुम्हारी बुर तो एक दम टाइट है !

तो उसने कहा- हाँ, मैं पहली बार करवा रही हूँ। मैंने तुमसे झूठ इसलिए कहा क्योंकि मैं तुमसे सेक्स करना चाहती थी। अगर मैं तुमसे नहीं कहती कि मैं दो बार चुदवा चुकी हूँ तो तुम डर जाते, क्योंकि मैं जानती हूँ कि तुम मुझसे शादी नहीं करोगे। कहाँ मैं और कहाँ तुम। इसलिए तुम्हें एहसास हो जाये कि मैं एक चुदासी लड़की हूँ। जिससे तुम जल्द ही तुम मेरे साथ सेक्स करने के लिए राजी हो जाओ।

यह सब सुनकर मुझे लगा कि अब मैं उसे नहीं चोदूंगा पर मैं अपने आपको नहीं रोक सका। तभी उसने कहा- क्या सोच रहे हो ? जल्दी चोदो ना !

मैंने भी एक बार फिर अपना लण्ड बुर पर रखा और धीरे-धीरे करके उसे बुर के अन्दर डालने लगा। वह अपनी जीभ को दांतों तले दबाये थी। फिर एकाएक मैंने जोरदार धक्का दिया जिससे मेरा पूरा लण्ड बुर में चला गया। उसकी चीख जोरदार होने के कारण मुझे उसका मुंह बंद करना पड़ा। दिन का समय था कोई भी घर में आ सकता था। कुछ मिनट बाद मैंने असली चुदाई शुरू की। मैं धक्के पर धक्के लगाये जा रहा था। फच -फच की आवाजे चारों ओर गूंजने लगी थी। उसे भी मस्ती आ रही थी। वह भी खूब मजे लेकर चुदाई का आनंद उठा रही थी। उसके दूसरी बार झड़ने के बाद मैं भी उसकी बुर में झड़ गया और उसके बगल में लेट गया। कुछ समय बाद वह उठी और लड़खड़ाते हुए बाथरूम की ओर जाने लगी। मैंने बिस्तर पर देख तो खून ही खून था। कुछ खून उसके जाँघों पर लगा था। जब वह बाथरूम से आई तो मुस्कुरा रही थी।

मैंने पूछा- यह तुम पहली बार कर रही थी, पर तुम्हारे अंदाज़ से तो मुझे कभी भी नहीं लगा कि यह पहली बार थी?

उसने कहा- क्योंकि मैं ब्लू फिल्म कई बार देख चुकी हूँ। जिससे बहुत कुछ सीख गई थी। लेकिन यार काली लड़कियों की बुर एक दम कमाल की होती है। कभी कोशिश करके देखो। एक दम मक्खन जैसा बुर। मज़ा आ जायेगा। अगर लड़कियां पढ़ रही होगी तो माफ करना, लेकिन क्या यह झूठ है।

मैंने जाते-जाते उससे पूछ लिया- तो अगली बार कब ?

वह मुस्कुराते हुए बोली- जब तुम चाहो।

पर अफसोस, दूसरी बार यह मौका नहीं मिला अब तक। दुआ करो कि यह मौका जल्द ही मिल जाये।

तो मेरी कहानी आपको कैसी लगी आप लोग जरुर मेल करें, आपके मेल से ही हम सभी लेखकों को हौंसला मिलता है।

अगली कहानी के लिए आप प्रतीक्षा कीजिये।
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भाभी भूखी शेरनी - Bhabhi Bhukhi Sherni



यह कहानी मुझे श्री मुकेश श्रीवास्तव ने भेजी है जिसे उन्होंने मुझे कहानी के रूप में लिखने की विनती की है। जरा सुने तो कि श्रीवास्तव जी क्या कह रहे हैं !

भाभी, भैया और मैं मुम्बई में रहते थे। मैं उस समय पढ़ता था। भैया अपने बिजनेस में मस्त रहते थे और खूब कमाते थे। मुझे तब जवानी चढ़ी ही थी, मुझ तो सारी दुनिया ही रंगीली नजर आती थी। जरा जरा सी बात पर लण्ड खड़ा हो जाता था। छुप छुप कर इन्टरनेट पर नंगी तस्वीरे देखता था और अश्लील पुस्तकें पढ़ कर मुठ मारता था। घर में बस भाभी ही थी, जिन्हें आजकल मैं बड़ी वासना भरी नजर से देखता था। उनके शरीर को अपनी गंदी नजर से निहारता था, भले ही वो मेरी भाभी क्यो ना हो, साली लगती तो एक नम्बर की चुद्दक्कड़ थी।

क्या मस्त जवान थी, बड़ी-बड़ी हिलती हुई चूंचियां ! मुझे लगता था जैसे मेरे लिये ही हिल रही हों। उसके मटकते हुये सुन्दर कसे हुये गोल चूतड़ मेरा लण्ड एक पल में खड़ा कर देते थे।

जी हां ... ये सब मन की बातें हैं ... वैसे दिल से मैं बहुत बडा गाण्डू हूँ ... भाभी सामने हों तो मेरी नजरें भी नहीं उठती हैं। बस उन्हें देख कर चूतियों की तरह लण्ड पकड़ कर मुठ मार लेता था। ना ... चूतिया तो नहीं पर शायद इसे शर्म या बड़ों की इज्जत करना भी कहते हों।

एक रात को मैं इन्टर्नेट पर लड़कियों की नंगी तस्वीरे देख कर लेटा हुआ लण्ड को दबा रहा था। मुझे इसी में आनन्द आ रहा था। मुझे अचानक लगा कि दरवाजे से कोई झांक रहा है... मैं तुरन्त उठ बैठा, मैंने चैन की सांस ली।

भाभी थी...

"भैया, चाय पियेगा क्या..." भाभी ने दरवाजे से ही पूछा।

"अभी रात को दस बजे...?"

"तेरे भैया के लिये बना रही हूँ ... अभी आये हैं ना..."

"अच्छा बना दो ... !" भाभी मुस्कराई और चली गई। मुझे अब शक हो गया कि कहीं भाभी ने देख तो नहीं लिया। फिर सोचा कि मुस्करा कर गई है तो फिर ठीक है... कोई सीरियस बात नहीं है।

कुछ ही देर में भाभी चाय लेकर आ गई और सामने बैठ गईं।

"इन्टरनेट देख लिया... मजा आया...?" भाभी ने कुरेदा।

मैं उछल पड़ा, तो भाभी को सब पता है, तो फिर मुठ मारने भी पता होगा।

"हां अ... अह्ह्ह हां भाभी, पर आप...?"

"बस चुप हो जा... चाय पी..." मैं बेचैन सा हो गया था कि अब क्या करूँ । सच पूछो तो मेरी गाण्ड फ़टने लगी थी, कहीं भैया को ना कह दें।

"भाभी, भैया को ना कहना कुछ भी...!"

"क्या नहीं कहना... वो बिस्तर वाली बात... चल चाय तो खत्म कर, तेरे भैया मेरी राह देख रहे होंगे !"

खिलखिला कर हंसते हुए उन्होंने अपने हाथ उठा अंगड़ाई ली तो मेरे दिल में कई तीर एक साथ चल गये।

"साला डरपोक... बुद्धू ... ! " उसने मुझे ताना मारा... तो मैं और उलझ गया। वो चाय का प्याला ले कर चली गई। दरवाजा बंद करते हुये बोली- अब फिर इन्टर्नेट चालू कर लो... गुड नाईट...!"

मेरे चेहरे पर पसीना छलक आया... यह तो पक्का है कि भाभी कुछ जानती हैं।

दूसरे दिन मैं दिन को कॉलेज से आया और खाना खा कर बिस्तर पर लेट गया। आज भाभी के तेवर ठीक नहीं लग रहे थे। बिना ब्रा का ब्लाऊज, शायद पैंटी भी नहीं पहनी थी। कपड़े भी अस्त-व्यस्त से पहन रखे थे। खाना परोसते समय उनके झूलते हुये स्तन कयामत ढा रहे थे। पेटीकोट से भी उनके अन्दर के चूतड़ और दूसरे अंग झलक रहे थे। यही सोच सोच कर मेरा लण्ड तना रहा था और मैं उसे दबा दबा कर नीचे बैठा रहा था। पर जितना दबाता था वो उतना ही फ़ुफ़कार उठता था। मैंने सिर्फ़ एक ढीली सी, छोटी सी चड्डी पहन रखी थी। मेरी इसी हालत में भाभी ने कमरे में प्रवेश किया, मैं हड़बड़ा उठा। वो मुस्कराते हुये सीधे मेरे बिस्तर के पास आ गई और मेरे पास में बैठ गई। और मेरा हाथ लण्ड से हटा दिया।

उस बेचारे क्या कसूर ... कड़क तो था ही, हाथ हटते ही वो तो तन्ना कर खड़ा हो गया।

"साला, मादरचोद तू तो हरामी है एक नम्बर का..." भाभी ने मुझे गालियाँ दी।

"भाभी... ये गाली क्यूँ दी मुझे...?" मैं गालियाँ सुनते ही चौंक गया।

"भोसड़ा के ! इतना कड़क, और मोटा लण्ड लिये हुये मुठ मारता है?" उसने मेरा सात इन्च लम्बा लण्ड हाथ में भर लिया।

"भाभी ये क्या कर रही आप... !" मैंने उनक हाथ हटाने की भरकस कोशिश की। पर भाभी के हाथों में ताकत थी। मेरा कड़क लण्ड को उन्होंने मसल डाला, फिर मेरा लण्ड छोड़ दिया और मेरी बांहों को जकड़ लिया। मुझे लगा भाभी में बहुत ताकत है। मैंने थोड़ी सी बेचैनी दर्शाई। पर भाभी मेरे ऊपर चढ़ बैठी।

"भेन की चूत ... ले भाभी की चूत ... साला अकेला मुठ मार सकता है... भाभी तो साली चूतिया है ... जो देखती ही रहेगी ... भाभी की भोसड़ी नजर नहीं आई ...?" भाभी वासना में कांप रही थी। मेरा लण्ड मेरी ढीली चड्डी की एक साईड से निकाल लिया। अचानक भाभी ने भी अपना पेटिकोट ऊंचा कर लिया। और मेरा लण्ड अपनी चूत में लगा दिया।

"चल मादरचोद... घुसा दे अपना लण्ड... बोल मेरी चूत मारेगा ना...?" भाभी की छाती धौंकनी की तरह चलने लगी। इतनी देर में मेरे लण्ड में मिठास भर उठी। मेरी घबराहट अब कुछ कम हो गई थी। मैंने भाभी की चूंचियाँ दबाते हुये कहा,"रुको तो सही ... मेरा बलात्कार करोगी क्या, भैया को मालूम होगा तो वो कितने नाराज होंगे !"

भाभी नरम होते हुए बोली," उनके रुपयों को मैं क्या चूत में घुसेड़ूगी ... हरामी साले का खड़ा ही नहीं होता है, पहले तो खूब चोदता था अब मुझे देखते ही मादरचोद करवट बदल कर सो जाता है... मेरी चूत क्या उसका बाप चोदेगा... अब ना तो वो मेरी गाण्ड मारता है और ना ही मेरी चूत मारता है... हरामी साला... मुझे देख कर चोदू का लण्ड ही खड़ा नहीं होता है !"

"भाभी इतनी गालियाँ तो मत निकालो... मैं हूँ ना आपकी चूत और गाण्ड चोदने के लिये। आओ मेरे लण्ड को चूस लो !"

भाभी एक दम सामान्य नजर आने लग गई थी अब, उनके मन की भड़ास निकल चुकी थी। मेरा तन्नाया हुआ लण्ड देख कर वो भूखी शेरनी की तरह लपक ली। उसका चूसना ही क्या कमाल का था। मेरा लण्ड फ़ूल उठा। उसका मुख बहुत कसावट के साथ मेरे लौड़े को चूस रहा था। मेरे लण्ड को कोई लड़की पहली बार चूस रही थी। वो लण्ड को काट भी लेती थी। कुछ ही समय में मेरा शरीर अकड़ गया और मैंने कहा,"भाभी, मत चूसो ! मेरा माल निकलने वाला है... !"

"उगल दे मुँह में भोंसड़ी के... !" उसका कहना भी पूरा नहीं हुआ था कि मेरा लण्ड से वीर्य निकल पड़ा।

"आह मां की लौड़ी... ये ले... आह... पी ले मेरा रस... भेन दी फ़ुद्दी... !" मेरा वीर्य उसके मुह में भरता चला गया। भाभी ने बड़े ही स्वाद लेकर उसे पूरा पी लिया।

भाभी बेशर्मी से अब बिस्तर पर लेट गई और अपनी चूत उघाड़ दी। उसकी भूरी-भूरी सी, गुलाबी सी चूत खिल उठी।

"चल रे भाभी चोद ... चूस ले मेरी फ़ुद्दी... देख कमीनी कैसे तर हो रही है !" तड़पती हुई सी बोली।

मुझे थोड़ा अजीब सा तो लगा पर यह मेरा पहला अनुभव था सो करना ही था। जैसे ही मुख उसकी चूत के पास लाया, एक विचित्र सी शायद चूत की या उसके स्त्राव की भीनी सी महक आई। जीभ लगाते ही पहले तो उसकी चूत में लगा लसलसापन, चिकना सा लगा, जो मुझे अच्छा नहीं लगा। पर अभी अभी भाभी ने भी मेरा वीर्य पिया था... सो हिम्मत करके एक बार जीभ से चाट लिया। भाभी जैसे उछल पड़ी।

"आह, भैया... मजा आ गया... जरा और कस कर चाट...!"

मुझे लगा कि जैसे भाभी तो मजे की खान हैं... साली को और रगड़ो... मैंने उसे कस-कस कर चाटना आरम्भ कर दिया। भाभी ने मेरे सर के बाल पकड़ कर मेरा मुख अपने दाने पर रख दिया।

"साले यह है रस की खान... इसे चाट और हिला... मेरी माँ चुद जायेगी राम... !" दाने को चाटते ही जैसे भाभी कांप गई।

"मर गई रे ! हाय मां की ... ! चोद दे हाय चोद दे ... ! साला लण्ड घुसेड़ दे !... मां चोद दे... हाय रे !" और भाभी ने अपनी चूत पर पांव दोहरे कर लिये और अपना पानी छोड़ दिया। ये सब देख कर मेरा मन डोल उठा था। मेरा लण्ड एक बार फिर से भड़क उठा।

भाभी ने ज्योंही मेरा खड़ा लण्ड देखा,"साला हरामी... एक तो वो है... जो खड़ा ही नहीं होता है... और एक ये है... फिर से जोर मार रहा है..."

"भाभी, मैंने यह सब पहली बार किया है ना... ! मुझे बार-बार आपको चोदने की इच्छा हो रही है !"

"चल रे भोसड़ी के... ये अपना लण्ड देख...साला पूरा छिला हुआ है... और कहता है पहली बार किया है !"

"भाभी ये तो मुठ मारने से हुआ है... उस दो रजाई के बीच लण्ड घुसेड़ने से हुआ है... सच...! "

"आये हाये... मेरे भेन के लौड़े ... मुझे तो तुझ पर प्यार आ रहा है सच ... साले लण्ड को टिका मेरे गाण्ड के गुलाब पर... मेरे चिकने लौण्डे !" भाभी ने एक बार फिर से मुझे कठोरता से जकड़ लिया और घोड़ी बन गई। अपनी भूखी प्यासी गाण्ड को मेरे लौड़े पर कस दिया।

"चल हरामी... लगा जोर ... घुसेड़ दे...तेरी मां की ... चल घुसा ना... !" मेरे हर तरफ़ से जोर लगाने पर भी लण्ड अन्दर नहीं जा रहा था।

"भोसड़ी के... थूक लगा के चोद ...नहीं तो तेल लगा के चोद... वाकई यार नया खिलाड़ी है !" और भाभी ने अपने कसे हुये सुन्दर से गोल गोल चूतड़ मेरे चेहरे के सामने कर दिये। मैंने थूक निकाल कर जीभ को उसकी गाण्ड पर लगा दी और उसे जीभ से फ़ैलाने लगा। भाभी को जोरदार गुदगुदी हुई।

"भड़वे... और कर... जीभ गाण्ड में घुसा दे... हाय हाय हाय रे ... और जीभ घुमा... आह्ह्ह रे... गाण्ड में घुसा दे...बड़ा नमकीन है रे तू तो !" उसकी सिसकारियाँ मुझे मस्त किये दे रही थी।

"भाभी ... ये नमकीन क्या ?" मैंने पूछा तो वो जोर से हंस दी।

"तेरे लौड़े की कसम भैया जी ... जीभ से गाण्ड मार दे राम ..." मैंने भी अपनी जीभ को उसकी गाण्ड में घुसा दी और अन्दर बाहर करने लगा। मैंने अपनी अपनी एक अंगुली उसकी चूत में भी घुसा दी। भाभी तड़प सी उठी।

"आह मार दे गाण्ड रे... उठा लौड़ा... मार दे अब...भोसड़ी के "

मैंने तुरंत अपनी पोजिशन बदली और और उसकी गाण्ड के पीछे चिपक गया और तन्नाया हुआ लण्ड उसकी गाण्ड की छेद पर रख दिया और जोर लगाते ही फ़क से अन्दर उतर गया।

"मदरचोद पेल दे... चोद दे गाण्ड ... साली को ... मरी भूखी प्यासी तड़प रही थी... चोद दे इस कमीनी को..."

मेरी कमर अब उसे चोदते हुये हिलने लगी थी। मेरा लण्ड तेजी से चलने लगा था। उसकी गाण्ड का छेद अब बन्द नहीं हो रहा था। जैसे ही मैं लण्ड बाहर निकालता, वो खुला का खुला रह जाता। तभी मैं जल्दी से फिर अपना लण्ड घुसेड़ देता... हां एक थूक का लौन्दा जरूर उसमें टपका देता था। फिर वापस से दनादन चोदने लगता था। बीच बीच में वो आनन्द के मारे चीख उठती थी। घोड़ी बनी भाभी की चूत भी अब चूने लग गई थी। उसमें से रति-रस बूंद बूंद करके टपकने लगा था। मैंने अपना लन्ड बाहर निकाल कर उसकी चूत में घुसेड़ दिया।

"भोसड़ी के ...धीरे से... मेरी चूत तो अभी तो साल भर से चुदी भी नहीं है... धीरे कर !"

"ना भाभी... मत रोको... चलने दो लौड़ा...। "

" हाय तो रुक जा ... नीचे लेट जा... मुझे चोदने दे अब..."

"बात एक ही ना भाभी... चुदना तो चूत को ही है..."

"अरे चल यार... मुझे मेरे हिसाब से चुदने दे...भोसड़ी तो मेरी है ना..." उसके स्वर में व्याकुलता थी।

मेरे नीचे लेटते ही वो मुझ पर उछल कर चढ़ गई और खड़े लण्ड पर चूत के पट खोलकर उस पर बैठ गई। चिकनी चूत में लण्ड गुदगुदी करता हुया पूरा अन्दर तक बैठ गया। उसके मुख से एक आह निकल पड़ी। अब उसने मेरा लण्ड थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर जोर लगा कर और भी गहराई में उतारने लगी। हर बार मुझे लण्ड पर एक जोर की मिठास आ जाती थी। उसके मुँह से एक प्रकार की गुर्राहट सी निकल रही थी जैसे कि कोई भूखी शेरनी हो और एक बार में ही पुरा चुद जाना चाहती हो। अब तो अपनी चूत मेरे लण्ड पर पटकने लगी... मेरा लण्ड मिठास की कसक से भर उठा। उसके धक्के बढ़ते गये और मेरी हालत पतली होती गई... मुझे लगा कि मैं बस अब गया... तब गया...। पर तभी भाभी ने अपने दांत भींच लिये और मेरे लण्ड को जोर से भीतर रगड़ दिया और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। चूत की रगड़ खाते ही मेरी जान निकल गई और मेरे लण्ड ने चूत में ही अपना यौवन रस छोड़ दिया...

उसकी चूत में जैसे बाढ़ आ गई हो। मेरा तो वीर्य निकले ही जा रहा था... और शायद भाभी की चूत ने भी चुदाई के बाद अपना रस जोर से छोड़ दिया था। वो ऊपर चढ़ी अपना रस निकाल रही थी और फिर मेरे ऊपर लेट गई। सब कुछ फिर से एक बार सामान्य हो गया...

"भाभी आपकी चुदाई तो ..."

भाभी ने मेरे मुख पर हाथ रख दिया,"अब नहीं ... गालियाँ तो चुदाई में ही भली लगती है...अब अगली चुदाई में प्यारी-प्यारी गालियां देंगे !"

‘सॉरी, भाभी... हां मैं यह पूछ रहा था कि जब आप को मेरे बारे में पता था तब आपने पहल क्यों नहीं की?"

"पता तो तुझे भी था... मैं इशारे करती तो तू समझता ही नहीं था... फिर जब मुझे पक्का पता चल गया कि तेरे मन में मुझे चोदने की है और तू मेरे नाम की मुठ मारता है तो फिर मेरे से रहा नहीं गया और तुझ पर चढ़ बैठी और मस्ती से चुदवा लिया।"

"भाभी धन्यवाद आपको ... मतलब अब कब चुदाई करेंगें...?"

"तेरी मां की चूत... आज करे सो अब... चल भोसड़ी के चोद दे मुझे...! " और भाभी फिर से मुझे नोचने खसोटने के लिये मुझ पर चढ़ बैठी और मुझे नीचे दबा लिया और मुझे गाल पर काटने लगी। मैं सिसक उठा और वो एक बार फिर से मुझ पर छा गई...

मेरा लण्ड तन्ना उठा... मेरा चेहरा उसने थूक से गीला कर दिया और मेरे गालों को काटने लगी...। मेरा लण्ड उसकी चूत में फिर से घुस पड़ा...

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दीदी की रात भर चुदाई कहानी



मेरे पापा कंपनी के काम से पन्दरह दिन के लिए बंगलुरु गए है, मेरे घर भागलपुर है, घर में मैं मेरी माँ और मेरी मौसेरी बहन नैना रहती है, नैना दीदी की उम्र उम्र २३ साल है, वो मेरे यहाँ एक महीने के लिए रहने आई है क्यों की उनके कॉलेज की छुटियाँ चल रही है इस वजह से.गर्मी के दिन में हमलगो छत पे ही सोते है माँ दीदी और मैं साथ ही छत पे सोते है एक बड़ा सा विस्तार है उसी पे, नैना दीदी काफी मदमस्त किस्म की लड़की है भगवन ने बड़े ही फुर्सत में उनको बनाया है, कमाल की सेक्सी फिगर है उनका, जब से वो आई है पता नहीं कितना बार मूठ मार चूका है, उनके गोल गोल गांड और टाइट बड़ी बड़ी चूचियाँ को देख कर तो मैं होशो हवश खो देता था, जब भी उनके बारे में सोचता या तो उनको देखता मेरा लंड नाग की तरह फुफ्करने लगता, मेरा लंड तो बूब को देखते ही नाचने लगता.

एक दिन की बात है मैंने सोचा मुझे अपने नैना दीदी पे हाथ साफ़ कर ही देना चाहिए, रात को जब माँ और दीदी दोनों सो गयी तब मैं नैना दीदी के करीब आ गया और धीरे से उनके पेट को सहलाने लगा, और धीरे धीरे उनके बूब को भी टच कर देता, फिर मूठ मार के सो जाता, दो तीन दिन तो यही सब किया पर एक दिन मैंने सोच लिया की आज तो छूट को टच कर के ही रहुगा, जब दोनों सो गयी तब फिर मैं नैना दीदी के समीप गया और बूब को टच किया फिर मैंने उनके कुरता को ऊपर कर दिया उसके बाद उनके पेट को सहलाया और फिर सलवार का नाड़ा खोल दिया
फिर मैंने हिम्मत कर के सलवार के अंदर हाथ डाला दीदी उस समय गहरी नींद में थी, मैंने देखा की दीदी अंदर पेंटी पहनी थी, मैंने धीरे से पेंटी के अंदर भी हाथ डाला तो चूत काफी गरम था और चूत पे बहुत सारे बाल था मैंने धीरे धीरे दीदी की चूत को सहलाने लगा और एक हाथ से अपना लंड निकाल के, लंड पे थूक लगाया (गिला किया) और मूठ मारने लगा, करीब मैंने झड़ने ही बल था की दीदी मेरे हाथ पकड़ ली, इस विच मेरा वीर्य भी निकल गया और सारा वीर्य दीदी के पेट पे पिचकारी के तरह चला गया, दीदी ने हाथ लगायी और बोली ये क्या किया तूने |मैं काफी डर गया मेरे तो पसीने निकलने लगे, मैं डरते डरते बोला दीदी मुझे माफ़ करना फिर कभी ऐसा नहीं होगा मैं अब थोड़ा दूर और अलग विस्तार से सो जाऊंगा, पापा को मत कहना, मुझे काफ करना, इतना सुनते ही दीदी ने मुझे साइन से लगा लिया, बोली चल आज के लिए तुम्हे माफ़ कर देती हु,
कोई गर्ल फ्रेंड है? मैंने कहा नहीं मेरी कोई भी गर्ल फ्रेंड नहीं है. फिर दोनों चुपचाप सो गए. फिर भी मेरी कुछ करने की हिम्मत नहीं हुई। सुबह हुई तो मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था। लेकिन वो अब मुझसे ज्यादा ही खुल गई थीं, वो अब मुझसे हंसी-मजाक ज्यादा करने लगी थीं। वो अब जानबूझ कर खुद को मेरे जिस्म से रगड़ देती थीं जिसमें मुझे मजा तो आता था लेकिन मैं अब भी कुछ भी करने से डरता था। फिर 4-5 दिन ऐसे ही निकल गए सिर्फ मूठ ही मारा करता था ।
एक दिन की बात है मम्मी दो दिन के लिए मामा के घर चली गईं। क्यों की वह शादी था अब घर पर बस मैं और दीदी ही रह गए थे।जिस दिन मम्मी गयी उस दिन शाम को दीदी ने जल्दी खाना बनाया, हम दोनों ने मिल कर खाना खाया। उसके बाद हम दोनों बिस्तर पर लेट गए। वारिश होने की वजह से छत पे नहीं गए थे कमरे में ही पलंग था उसी पर सो गए था. उस दिन नैना दीदी ने एकदम पारदर्शी नाइटी पहनी थी, जिसमें से उनका पूरा चिकना सा बदन एकदम साफ-साफ दिख रहा था। वो बहुत ही सेक्सी लग रही थीं। वो बिस्तर पर बड़ी ही लापरवाही से लेट गईं जिससे उनकी नाइटी उनकी जांघों से भी ऊपर तक सरक गई थी और उनकी चिकनी नंगी
जांघें साफ दिख रही थीं। मेरा तो माथा थानक गया था उनकी आँखें बंद थीं। आज मुझे उनके इरादे ठीक नहीं लग रहे थे। पर मैं भी उस दिन थोड़ा सेक्सी मूड में था मैंने भी थोड़ा हिम्मत दिखाते हुए उनकी नंगी जाँघों पर अपना हाथ रखा और सहलाने लगा।वो अभी भी वैसे ही लेटी थीं तो मेरी हिम्मत और बढ़ी, मैंने अपना हाथ थोड़ा और ऊपर सरकाया तो पता चला कि आज उन्होंने पैन्टी नहीं पहनी थी। मैं तो बहुत ही खुश हुआ और मुझे अब पक्का यकीन हो गया था कि वो भी वही चाहती हैं जो मैं चाहता हूँ यानी की मैं चोदना और दीदी चुदवाना। अब मुझे बिल्कुल भी डर नहीं लग रहा था। मैंने अब उनकी नाइटी उतारने की कोशिश की तो उन्होंने भी अपने बदन को उठा कर मेरी सहायता की और मैंने उनके नाइटी को उतार दिया । लेकिन उनकी आँखें अभी भी बंद थीं, शायद ये भाई-बहन के रिश्ते की वजह से लज्जा भाव था.. जिसे वो भुला नहीं पा रही थीं मैंने भी उस चीज़ का सम्मान किया । जैसे ही उनकी नाइटी उनके बदन से अलग हुई.. मैं तो दंग रह गया। आज उन्होंने ब्रा भी नहीं पहनी थी उनका दीदी की नंगा चिकना बदन मेरे सामने था, मैं तो देखते ही पागल हो गया। आप ये चुदाई कहानी नॉनवेज स्टोरी डॉट कॉम पे पढ़ रहे है |
फिर क्या था मेरा लंड टनटनाने लगा। मैं सीधे ही दीदी की बड़ी-बड़ी रसीली चूचियों पर टूट पड़ा। मैंने उनका एक बूब को मुँह में भर लिया और दूसरे को अपने हाथ से मसलने लगा दीदी गरम होने लगी | उसके बाद वो तो मादक सिसकारियाँ निकलने लगी थीं। उनका एक मेरे बालों में और दूसरा हाथ मेरे लंड पर था.. जिसे वो मसल रही थी। हम दोनों ही आनन्द के सागर में गोते लगा रहे थे। और मेरा नाग बाबा फुफकार रहा था | अब वो एकदम से उठीं और मेरे लंड को चूसने लगीं। कुछ ही देर में हम दोनों ही 69 की दशा में आ गए थे।और एक दूसरे को चूसने लगे मेरा लंड उनके मुँह में था और दीदी की चूत मेरे मुँह में थी। मैं बीच-बीच में उनके दाने को काट लेता तो वो तड़प उठतीं। हम दोनों ही एक बार तो इसी स्थिति में झड़ गए। फिर भी मैं उनकी चूत चाटे जा रहा था। उनके मुँह से अजीब सी आवाजें निकलने लगी थीं- अब और मत तड़पाओ मुझे जान.. डाल दो अपना लंड… फाड़ दो मेरी चूत… बना दो अपनी बहन क़ी चूत का भोसड़ा… बन जा बहनचोद…चोद दे मुझे… शांत कर दे अपने बहन को |मैंने भी अब ज्यादा देर करना उचित नहीं समझा और पेल दिया अपना मूसल अपनी ही बहन क़ी ओखली में.. फिर जो धक्कों का दौर चालू हुआ वो जब तक
पसीना पसीना नहीं हो गया तब तक नहीं थमा | इस बीच मेरी दीदी 3 बार झड़ चुकी थीं। अंत में मेरे लंड से जो वीर्य क़ी धार निकली.. उससे उनकी चूत लबालब भर गई। उनके चेहरे पर अब संतुष्टि के भाव थे। बाद में उन्होंने मुझे बताया कि वो पहले भी अपने ब्वॉय-फ्रेंड से और एक बार वो अपने टीचर से चुद चुकी हैं। लेकिन जो मजा उन्हें मेरे साथ आया वो पहले नहीं आया क्योंकि उनके ब्वॉय-फ्रेंड का लंड छोटा और पतला है। और टीचर का छोटा था.उसके बाद जब तक मम्मी घर नहीं आईं.. तब तक हमने जम कर चुदाई की ऐसा एक दिन भी नहीं गया जिस दिन हम दोनों ने चुदाई नहीं की । आज भी हमें जब मौका मिलता है तो हम कभी नहीं चूकते। दोस्तो, यह मेरी दीदी की चुदाई कहानी है जो एकदम सत्य है।आपको ये दीदी की चुदाई कहानी कैसी लगी प्लीज रेट करें
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पति_के_सामने



आप मुझे नन्दिनी कह सकते हैं, लेकिन यह मेरा असली नाम नहीं है।
मैं आपको अपना असली नाम बता नहीं सकती क्योंकि मैं शादीशुदा हूँ।

शादी से पहले मेरी भी कुछ तमन्नाएँ थी, मन में उमंग थी कि शादी के बाद अपने पति से खूब प्यार करूँगी, उनको पूरा मजा दूंगी और मज़ा लूंगी।

शादी से पहले मैंने अपने कौमार्य को अपने पति के लिए बचा कर रखा था, सोचा था कि सुहागरात को अपने प्रियतम से अपना शील-भंग करवाऊँगी। यों तो हज़ारों लड़के मुझ पर मरते थे। पड़ोस में रहने वाला और कॉलेज़ में पढ़ने वाला हर जवान लड़का मेरे कमसिन बदन पर नज़रें गड़ाए रहता था, मुझे यह सब अच्छा भी लगता था मगर समाज की मर्यादा और लोक-लाज़ ने मुझे कभी बहकने नहीं दिया।

सुहागरात मे मैं उनको देखकर हैरान रह गई। मेरी उमर उस समय सिर्फ़ 18 बरस थी। उन्होंने आते ही दरवाज़ा बंद कर लिया और मेरी बगल में बैठ गए। वे मुझे पकड़ कर चूमने लगे। कुछ इधर उधर की बातें करने के बाद उन्होंने मेरा ब्लाउज खोल दिया। मैंने ब्रा पहन रखी थी। कुछ देर ऊपर से ही सहालाने के बाद ब्रा भी खोल दी और मेरी चूचियाँ चूसने लगे। मुझे अब अच्छा लगने लगा था।

मैंने धीरे से अपनी हाथ उनके लंड की तरफ़ बढ़ाया। अभी तक कुछ भी नहीं हुआ था, वे और सहलाने के लिए बोलने लगे। मैं कुछ देर तक हाथ से सहलाती रही। खड़ा नहीं होने पर मुख में लेने के लिए कहने लगे। क़रीब दस मिनट के बाद भी जब नहीं खड़ा हो पाया तो मैं निराश हो गई। उनके लंड में नाम मात्र का ही कड़ापन आया था। उन्होंने मुझे पूरी नंगी कर दिया और अपने मुरझाए हुए लंड से मेरी बुर रगड़ने लगे। मैं तो उनके लंड के तैयार होने का इंतज़ार कर रही थी। वे मेरी बुर को जीभ से चूसने लगे पर अभी भी उनका लंड बहुत नर्म था। मैं मन ही मन इनको कोसती रही। वे मेरी बुर चूसने मे और मैं उनका लंड चूसने मे मशगूल थी। मुझे अब सह पाना मुश्किल था। जैसा था वैसा ही मैंने उनको चोदने के लिए कहने लगी। वे अपना नर्म लंड मेरी गर्म बुर में प्रवेश करने लगे मगर प्रवेश करने से पहले ही वे गिर गए। मेरी सारी इच्छाएँ धरी की धरी रह गई।

पहली रात ही मुझे अपने पति की असलियत पता चल गई जब उनकी छोटी सी लुल्ली मेरा योनि-आवरण का भेदन भी नहीं कर पाई। मैं तड़पती रह गई। मेरे दुबले पति, एक नन्हे लिंग के मालिक, अब सेक्स से डरते हैं।

कुछ दिन तो जैसे तैसे कट गए लेकिन इस तरह मैं कब तक जी सकती थी। मेरा व्यव्हार मेरे पति के प्रति खराब हो गया, मैं अपने पति को हीन दृष्टि से देखने लगी, बात बात में मैं उसे नपुंसक होने के ताने देने लगी। मैंने अपने पति को दुत्कार दिया और अब उसे अपने पास फ़टकने भी नहीं देती।

और मैं क्या करती?

मैंने अपने पति के ही एक मित्र नवीन पर डोरे डालने शुरु किए और मैं कामयाब भी हो गई। मैं उससे चुदने लगी।

एक बार मेरे पति ने मुझे नवीन के साथ देख लिया लेकिन कुछ बोला नहीं ! बोलता भी कैसे ?

उसके बाद से तो मुझे कोई डर ही नहीं रहा, जैसे मुझे खुली छूट मिल गई। मैं अपने पति के सामने ही नवीन से सेक्स की बातें करती और घर बुला कर चुदवाती।

जैसे जैसे मैं चुदती गई मेरी अन्तर्वासना बढ़ती गई। अब मेरा एक मर्द से काम चलना मुश्किल था। तभी अचानक हुआ यों कि मैं नवीन को फ़ोन मिला रही थी कि गलत नम्बर लग गया।

मैं : हेलो नवीन ?

उधर से(पुरुष की आवाज) : जी नहीं शायद आपने गलत नम्बर लगा दिया है।

मैं : ओह ! माफ़ कीजिएगा।

उधर से : जी, कोई बात नहीं ! अक्सर ऐसा हो जाता है।

मुझे उसकी आवाज बहुत अच्छी लगी और मुझे लगा कि यह मेरे काम का हो सकता है।

बात को आगे बढ़ाने की कोशिश में मैं बोली : वैसे आपका नम्बर क्या है?

उसने अपना नम्बर बताया तो मैंने कहा : एक अंक की गलती हो गई। वैसे आप रहते कहाँ हैं? आपका नाम क्या है।

उसने अपना नाम आलोक बताया और बदले में मेरा नाम पूछ लिया। ऐसे ही मैंने उससे जान-पहचान बना ली और धीरे-धीरे खुल कर बातें होने लगी। मुझे फ़ोन पर सेक्स की बातें करने में खूब मज़ा आने लगा।

एक दिन मैंने आलोक को अपने घर बुला लिया।

दिन के गयारह बजे दरवाज़े की घण्टी बजी..

मैंने दरवाज़ा खोला तो एक 28-30 साल की खूबसूरत युवक मेरे सामने खड़ा था...

"नमस्ते.. नन्दिनी जी?"

"हाँ ! आप आलोक जी? आइए ना.."

"थैन्क यू !"

आलोक अंदर आया और सोफे पर बैठ गया... मैं सामने के सोफे पर बैठ गई। मैंने जानबूझ कर घुटनों से कुछ ऊंची स्कर्ट और एक ढीला सा टॉप पहना था।

आलोक : आप बहुत सुन्दर हैं !

आप भी कुछ कम नहीं ! मैं बोली और मैं खिलखिलाकर हंस पड़ी।

आलोक मुस्कुराते हुए मुझे देख रहे थे...

मैंने पूछा,"आप कोल्ड ड्रिंक लेंगे या कॉफी?"

उसने मेरे उभारों की तरफ देखते हुए कहा,"जो आप प्यार से पिलाना चाहें !"

"फ़िर भी?"

"कोल्ड ड्रिंक"

"बीयर चलेगी?"

नेकी और पूछ-पूछ !"

मैं रसोई से दो ग्लास और फ़्रिज़ से एक बीयर निकाल लाई...

"यह लीजिए.."

आलोक बीयर गिलास में डालते हुए पूछने लगा,"नन्दिनी जी, आपके पति कहाँ हैं?"

"अपने काम पर !"

उसने मुझे गौर से देखते हुए कहा..."आपकी हँसी बहुत ही सेक्सी और कातिलाना है !"

मैंने कहा,"अच्छा??"

"कसम से ! नन्दिनी जी... आप किसी फिल्म एक्ट्रेस से कम नहीं हैं.."

मुझे आलोक का स्टाइल अच्छा लगा...

मैंने भी एक सेक्सी स्माइल दी, अपनी एक टांग ऊपर करके दूसरे घुटने पर रख ली और कहा,"ओह.. आप तो बड़े फ्लर्ट हो.. आलोक जी !"

वो धीरे से आगे आया.. और कहा,"एक बात कहूँ?"

मैं भी आगे झुक गई और कहा,"कहो !"

मेरे वक्ष मेरे टॉप के गले से पूरे के पूरे दिख रहे थे और आलोक की निगाहें सीधे वहीं पर थी।

आलोक धीरे से उठ कर मेरे साथ एक ही सोफे पर बैठ गया और मेरे कान के पास फुसफुसाकर कहा, "मैंने आज तक तुम जैसी सेक्सी हाउस वाइफ नहीं देखी.. नन्दिनी !" कहते ही कहते उसने फटाक से मेरी बाएँ गाल पर एक चुम्बन जड़ दिया...

"आउच !" मैंने नाटक किया..."तुम बड़े शरारती हो !" मैं मंद-मंद मुस्कुरा रही थी...

उसी वक़्त आलोक बिल्कुल मेरे बगल पर आ चुका था और उसने मेरे हाथ को अपने हाथों में ले लिया,"नन्दिनी..!"

"जी ?" मैं मुस्करा रही थी।

उसने मेरी हाथों की उंगलियों को सहलाते हुए कहा,"तुम्हारे ये लंबे नाख़ून, ये गहरे लाल रंग का नेल-एनेमल इन गोरी-गोरी उंगलियों पर कितनी सेक्सी लग रहा है..." मुझे आलोक का सहलाना और ऐसी बातें करना बहुत ही अच्छा लग रहा था...

"नन्दिनी, तुम अपने सौन्दर्य का बहुत ध्यान रखती हो !"..आलोक का हाथ धीरे धीरे अब मेरी पूरे हाथ और कलाई पर रेंग रहा था।

"हाँ ! मैं हफ्ते में दो बार ब्यूटी पार्लर जाती हूँ..."

मुझे अब आलोक का सहलाना और अच्छा लग रहा था..

"तभी तो तुम इतनी सेक्सी हो... नन्दिनी..... तुम्हारे पति बहुत भाग्यशाली हैं...यह सेक्सी फिगर, सेक्सी होंठ... तुम्हारे पति की तो ऐश ही ऐश है..."

"उसकी किस्मत में यह सब कहाँ? उससे कुछ होता ही नहीं !" मैं अनायास ही कह उठी।

अब आलोक अपने दायें हाथ से मेरे हाथ को सहलाते हुए अपना बायाँ हाथ मेरे कन्धे के ऊपर से ले गया और मेरी बाईं बाजू को पकड़ लिया," नन्दिनी, पता नहीं कैसे ऐसे लोगों को इतनी सेक्सी बीवी मिल जाती है..."

जब आलोक ने देखा कि मैंने कोई ऐतराज़ नहीं किया तो उसने धीरे से अपनी दायाँ हाथ भी मेरे दाएँ मम्मे पर रख दिया और हौले से दबा दिया...

"आ आ ह ह आलोक...!!"

"उम्म म म म ... कितनी सेक्सी है...!!"

"कौन ? मैं ?"

"हाँ तुम और कौन ?" उसने मुझे खींच कर अपनी बाँहों में भर लिया।

मैं भी किसी बेल की तरह उसके बदन से लिपट गई। आलोक मेरे चहरे को अपने हथेलियों के बीच लेकर चूमने लगा। मेरा शरीर तो पहले से ही कामाग्नि में तप रहा था, मैं भी उसके चुम्बनों का जवाब देने लगी। मैं उसके चहरे को बेतहाशा चूमने लगी, एक आदिम भूख जो मेरे पूरे अस्तित्व पर हावी हो चुकी थी।

उसके होंठ मेरे होंठों को मथ रहे थे, मेरे निचले होंठ को उसने अपने दांतों के बीच दबा कर धीरे धीरे काटना शुरू किया। फ़िर उसने अपनी जीभ मेरे होंठों से बीच से सरका कर मेरे मुँह में डाल दी। मैं उसकी जीभ को ऐसे चूस रही थी जैसे कोई रसीला फल हो। कुछ देर तक हम यूँही एक दूसरे को चूमते रहे।

आलोक का एक हाथ मेरी स्कर्ट के अन्दर जा चुका था और दूसरा मेरे टॉप में से मेरे वक्ष अनावृत करने की कोशिश कर रहा था।

टॉप ऊपर उठा और उसके होंठ फिसलते हुए मेरे एक चूचुक पर आकर रुके और आलोक उसे जोर से चूसने लगा। मेरे सारे बदन में एक सिहरन सी दौड़ने लगी।

आलोक एक स्तन को अपने मुँह में लेकर उससे जैसे दूध पी रहा था। मैं अपने सिर को उत्तेजना में झटकने लगी और उसके सिर को अपनी छाती पर जोर से दबाने लगी। थोड़ी देर के बाद उसने दूसरे स्तनाग्र को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगा। मैंने देखा कि पहला चूचुक काफ़ी देर तक चूसने के कारण काफ़ी फूल गया है।

मैं उत्तेजनावश अपना हाथ बढ़ा कर उसके लिंग को पैंट के ऊपर से ही टटोलने लगी । उनका लिंग तना हुआ था. काफ़ी बड़ा लग रहा था।

मैंने धीरे धीरे आलोक की पैंट खोल दी और उसने मेरी स्कर्ट उतार कर मुझे नंगी कर दिया।

"बहुत खूबसूरत हो !" आलोक ने एक बार फ़िर मेरे बदन की तारीफ़ की तो मैं एकदम किसी कमसिन लड़की की तरह शरमा गई। फ़िर उसने मुझे कन्धों से पकड़ कर नीचे की ओर झुकाया। मैं उसके सामने घुटनों के बल बैठ गई और मैंने धीरे से आलोक की पैंट खोल कर उसके लिंग को अन्डरवीयर से बाहर निकाला। मैंने पहली बार उसके लिंग को देखा तो मेरे मुँह से हाय निकल गई।

"काफ़ी बड़ा है !"

"अभी से घबरा गई !"

मैं घुटनों के बल बैठ कर कुछ देर तक अपने चेहरे के सामने उनके लिंग को पकड़ कर आगे पीछे करती रही। जब हाथ को पीछे करती तो लिंग का मोटा सुपाड़ा अपने बिल से बाहर निकाल आता। उनके लिंग के छेद पर एक बूँद प्री-कम चमक रही थी। मैंने अपनी जीभ निकाल कर लिंगाग्र पर चमकते हुये उस प्री-कम को अपनी जिव्हाग्र पर ले लिया और मुख में लेकर उसका स्वाद लिया जो मुझे बहुत भाया। फ़िर मैंने अपनी जीभ उनके लिंग के सुपाड़े पर फिरानी शुरू कर दी।

वो आ आआ अह ऊ ओ ह्ह्ह करते हुये मेरे सिर को दोनो हाथों से थाम कर अपने लिंग पर दबाने लगा।

"इसे पूरा मुँह में ले लो !!" आलोक ने कहा।

मैंने अपने होंठों को हल्के से अलग किया तो उसका लिंग सरसराता हुआ मेरी जीभ को रगड़ता हुआ अन्दर चला गया। मैंने उनके लिंग को हाथों से पकड़ कर और अन्दर तक जाने से रोका मगर उन्होंने मेरे हाथों को अपने लिंग पर से हटा कर मेरे मुँह में एक जोर का धक्का दिया, मुझे लगा आज यह लम्बा लिंग मेरे गले को फाड़ता हुआ पेट तक जा कर मानेगा। मैं दर्द से छटपटा उठी, मेरा दम घुटने लगा था। तभी उन्होंने अपने लिंग को कुछ बाहर निकाला और फ़िर वापस उसे गले तक धकेल दिया। वो मेरे मुँह में अपने लिंग से धक्के लगाने लगा।

कुछ ही देर में मैं उसकी हरकतों की अभ्यस्त हो गई और अब मुझे यह अच्छा लगने लगा। कुछ ही देर में मेरा बदन अकड़ने लगा और मेरे चूचुक एकदम तन गए, आलोक ने मेरी हालत को समझ कर अपने लिंग की रफ़्तार बढ़ा दी।

इधर मेरा रस योनि से बाहर निकलता हुआ जांघों को भिगोता हुआ घुटनों तक जा बहा, उधर आलोक का ढ़ेर सारा गाढ़ा रस मेरे मुँह में भर गया। मैं इतने वीर्य को एक बार में सम्भाल नहीं पाई और मुँह खोलते ही कुछ वीर्य मेरे होंठों से मेरी छातियों पर और नीचे जमीन पर गिर पड़ा। जितना मुँह में था उतना मैं पी गई।

उसके बाद मेरी जो जोरदार चुदाई हुई ! जो जोरदार चुदाई हुई ! अगली पिछली सारी कसर निकल गई।

अब मैं इसी तरह मैं फोन पर अपने लिए ऐसे असली मर्द ढूंढती हूँ जिन्हें जोरदार चुदाई पसंद हो और अपने पति के सामने उससे चुदती हूँ। मेरा बेचारा पति देखता रह जाता है और मैं मजे लेती हूँ !
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क्या_माल_है_रे_!




मेरा नाम रीना शर्मा है। यह कहानी उस वक्त की है जब मेरी शादी हुए छ: महीने हो चुके थे। मैं तो शादी के पहले से ही चुदने को बेकरार रहती थी। मेरी कई सहेलियों की शादी हो चुकी थी और वे अपनी चुदाई के किस्से मुझे सुनाती रहती थीं।सभी का कहना था कि जब चूत मैं पहली बार लँड घुसता है तो जो मजा आता है, वह मज़ा कोई लड़की बिना लँड लिये नहीं समझ सकती है। उसके बाद फिर चुदाई का आनंद तो इतना आता है कि कहना ही क्या। उनका कहना था कि रोज रात को टाँगें फैला और उचक उचक कर लँड लेने में जो मजा आता है वो तो दुनिया की किसी चीज में नहीं है। इसके अलावा, आदमी के ऊपर चढ़ कर चोदने में भी बहुत अच्छा लगता है। यह सब सुन कर मेरा मन भी लँड की कल्पना करता रहता था। अक्सर अकेले में मैं अपनी चूत में उंगली डाल कर अँदर-बाहर करती थी और सोचती थी कि कोई मुझे चोद रहा है। इससे मुझे काफी मजा आता था और कई बार मैं झड़ भी जाती थी।
पर शादी के बाद मेरी चुदवाने की इच्छाओं पर पानी फिर गया। दरअसल मेरे पति का लँड पूरी तरह खड़ा ही नहीं हो पाता था। उन्होंने मुझे बताया कि वह तो खुद ही शादी नहीं करना चाहते थे परन्तु घर वालों के दबाव में आकर मजबूरन शादी करनी पड़ गई। वह मुझसे हमेशा कहते कि मुझे माफ कर दो। मैं क्या कहती, अकेले चुपचाप रोती रहती थी। शादी होने के बावजूद मैं कुंवारी ही रह गई। उन्होंने मुझे कभी छुआ तक नहीं। वे जानते थे कि उनका खड़ा नहीं होता है और कहीं उनके नजदीक आने से मैं गरम हो गई तो उनके लिये मुझे सम्भालना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए वे अलग कमरे में ही सोते थे।मेरी चूत लँड का स्वाद चखने के लिये तड़पती रहती थी। मुझसे अच्छी किस्मत तो हमारी पालतू कुतिया टिम्मी की थी। जैसे ही घर से बाहर निकलती, गली के सारे कुत्ते उसके पीछे लग जाते थे। जब देखो एक न एक कुत्ता उसके ऊपर चढ़ा ही रहता था। साली दिनभर ठुकवाकर आती थी और मुझे ऐसे देखती थी जैसे चिढ़ा रही हो। मैं सोचती कि एक कुत्ता ही पाल लूँ और उसके साथ ट्राई करूँ , पर डर लगता था कि कहीं उसका लँड मेरी चूत में फँस गया तो क्या होगा। कई बार बैंगन,खीरा वगैरह भी प्रयोग किया पर लँड तो लँड ही होता है। वैसे मज़े के लिये मैं पागल सी होने लगी। रास्ते चलते किसी आदमी को देख कर मैं उसके लँड की कल्पना करने लगती थी, कि कैसा होगा। खड़ा हो कर कैसा दिखता होगा। मेरी चूत में जाएगा तो कैसा लगेगा। मेरी चूत में खुजली मचने लगती और चूत रस से गीली हो जाती। मैं घर पहुँचते ही सारे कपड़े उतार कर, मुठ मार के अपनी वासना की प्यास बुझा लेती थी। मुझे सपने भी अक्सर चुदाई के ही आते हैं। सपने में बड़े और मोटे लँड वाले आदमी दिखते, जो मेरी चूत को रगड़-रगड़ कर चोदते और अपना लँड मेरी गाँड में भी डालते रहते थे। कुल मिला के स्थिति यह हो गई थी कि मुझे तो सेक्स का भूत चढ़ गया था और मैं चुदने के लिये कुछ भी करने को तैयार थी। तभी मेरी ससुराल में एक हादसा हो गया। मेरे जेठ जो कि आर्मी में थे, एक आतंकवादी हमले में शहीद हो गये। क्रियाकर्म के बाद मेरी जिठानी सीमा हमारे साथ ही रहने चली आई। उसकी शादी मेरी शादी के एक साल पहले हुई थी, और अभी उसके कोई बच्चा नहीं था। मैं तो वैसे भी अलग कमरे में सोती थी और सीमा को अकेलापन न लगे, यह सोच कर मैंने उसके सोने का इंतज़ाम अपने साथ ही कर दिया। कुछ दिन बाद की बात है। रात को मेरी नींद खुली तो सीमा के सुबकने की आवाज़ आ रही थी। मैं उसे सांत्वना देने लगी तो वह मुझसे लिपट कर बहुत रोई। कुछ मन हल्का होने पर वह शांत हुई, पर हम एक दूसरे से लिपटे हुए थे। उसके बदन की गरमी और खुशबू से मुझे अजीब सी फीलिंग होने लगी थी। मैंने उसे पुचकारने के बहाने अपने होंठ उसके गाल पर लगा दिए और हल्के हल्के चूमने लगी। सीमा कुछ देर चुप रही फिर एक गहरी साँस लेकर उसने अपना मुँह ऐसे घुमाया कि उसके होंठ मेरे होंठों से सट गए। हम एक दूसरे के होंठों को चूमने लगे। फिर सीमा ने मुझे अपनी बाहों मे कस लिया और मेरे होंठों को बेतहाशा चूसने में लग गई। मेरे बदन में सेक्स का नशा छाने लगा था। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक औरत भी दूसरी औरत को इस तरह मज़ा दे सकती है। अब सीमा का हाथ मेरे ब्लाउज़ पर पहुँच चुका था और उसने एक सैकेंड में सारे हुक खोल डाले और मेरे मम्मों पर अपना हाथ रख दिया। मुझे तो जैसे करेंट लग गया,क्योंकि मुझे आज तक किसी ने ऐसे नहीं छुआ था। सीमा धीरे धीरे मेरे मम्मे सहलाने लगी। मेरे मम्मे काफी बड़े और दूध की तरह गोरे हैं। सीमा बोली- कैसा लग रहा है? मैंने कहा- बहुत अच्छा, आगे बढ़ो न सीमा मेरे निप्पल अपनी उंगली और अँगूठे से मसलने लगी, फिर अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया। कुछ देर बाद सीमा ने मेरा निप्पल अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसने लगी, साथ ही मेरे दूसरे मम्मे को हाथ से मसलती जा रही थी। अब तो उत्तेजना मेरी चूत तक पहुँचने लगी थी। मेरी चूत गीली होने लगी। फिर सीमा ने अपना कुर्ता और ब्रा भी उतार फैंके। उसके मम्मे भी भरे पूरे थे और चूचियाँ तनी हुईं थीं। उसने अपनी छातियाँ मेरी छातियों से सटा दीं और फिर अपने होंठ मेरे होंठों से सटा दिये। हमारी चूचियाँ आपस मे टकरा रहीं थीं और हम एक दूसरे से चिपक कर बेतहाशा किस करने लगे। मेरा सारा बदन मस्ती में डूबता जा रहा था। फिर सीमा ने मेरा हाथ अपनी छाती पर रख लिया और बोली- प्लीज़, दबाओ न ! मैं उसके मम्मों को मसलने और दबाने लगी। सीमा भी आँखे बंद करके मिंजवाने का मज़ा लेने लगी। मैंने भी सीमा का निप्पल अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। तभी सीमा ने कहा- तुम मेरे पीछे से झुक कर मेरे मम्मे चूसो जिससे मैं भी साथ में तुम्हारे मम्मे चूस सकूं।मैंने तुरंत सीमा की बताई पोज़िशन ले ली और पीछे से उसके मुँह पर झुक कर उसके मम्मे चूसने लगी। इससे मेरे मम्मे उसके मुँह के ऊपर आ गए और वह भी नीचे से मेरे मम्मे चूसने लगी। सच बताऊँ, बहुत मज़ा आने लगा था। काफी देर तक हम दोनों एक दूसरे के मम्मे चूसते रहे। मेरे निप्पल तो इतने कड़े हो गए कि उनमें दर्द होने लगा।कुछ देर बाद मैं सीमा के बगल में आकर लेट गई। सीमा ने तुरंत मेरा पेटिकोट खोल डाला और मेरी पैंटी नीचे कर के मुझे पूरा नंगा कर दिया। मैं थोड़ा शरमा रही थी और मैंने अपने हाथ अपनी टांगों के बीच चूत पर रख लिये।सीमा बोली- मत शर्माओ, मैं भी अपने कपड़े उतार देती हूँ। और उसने भी अपनी सलवार पैंटी नीचे करके उतार दी। उसने अपनी चूत शेव कर रखी थी, जो बिलकुल चिकनी दिख रही थी। वैसे मेरी चूत पर भी बहुत कम बाल थे और मेरे गोरेपन के कारण मेरी चूत बहुत सुंदर थी। मेरी चूत की दोनों फाँकें उभरी पर सटी हुई थीं क्योंकि अभी तक उसमें लँड एक बार भी नहीं घुसा था। सीमा हल्के हल्के मेरी चूत को सहलाने लगी और फिर उसने चूत की दोनों फाँकों को हल्के से फैला दिया। अँदर से मेरी चूत बिल्कुल गुलाबी थी। ऊपर चूत का दाना और नीचे टाइट छेद देख कर सीमा बोली- हाय,क्या माल है रे ! सीमा ने मेरी चूत को चूम लिया फिर धीरे से अपनी जीभ से चूत के दाने को चाटने लगी। मुझे तो करेंट जैसा लगा और इतना आनंद आने लगा कि क्या बताऊँ। मैं आँखें बंद करके चूत में हो रही सिहरनों का आनन्द लेने लगी। कुछ देर बाद सीमा ने अपनी जीभ से चूत के छेद को चाटने के बाद जीभ को छेद के थोड़ा अँदर घुसा दिया और जीभ अँदर-बाहर करने लगी। साथ ही साथ वह मेरे मम्मे भी मसल रही थी और चूचियों को सहलाते मसलते सीमा ने मुझे पागल कर दिया। कुछ देर बाद सीमा ने मेरी चूत में अपनी उंगली डाल दी और धीरे धीरे अँदर-बाहर करने लगी। मैंने भी अपनी टाँगें फैला लीं और चूत में हो रही फीलिंग का मज़ा लेने लगी। अब सीमा मेरे होठों को चूसने लगी और साथ ही अपनी दो उँगलियाँ मेरी चूत में घुसेड़ कर तेजी से उंगल-चुदाई करने लगी। मैंने भी अपने चूतड़ उठा उठा कर उसके हाथ को धक्का मारना शुरू कर दिया। मेरी चूत झनझनाने लगी और पूरे बदन में आनंद की लहरें दौड़ने लगीं। मेरे मुँह से आहें निकलने लगीं और मैं बोलने लगी- आsह, आsह सीsssमाsss, ऐसे ही चोद डालो मुझे। मुझे लगने लगा कि सीमा औरत नहीं बल्कि कोई मर्द है जो अपने लँड से मुझे चोद रहा है। सीमा बोली- ले रंडी, चुदवा ले मुझ से,आज तो मैं तेरी चूत फाड़ दूंगी। सीमा की ऐसी गंदी बातें सुन कर मैं वासना के रस में डूब गई। काफी देर इस तरह उंगल-चोदी के बाद मैं चरम सीमा पर पहुँच गई और मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं। मैं चिल्लाई- आऽऽऽह, मम्मीऽऽऽ, मर गईऽऽऽ । सीऽऽऽमाऽऽऽ, फाड़ दे मेरी चूत को। सीमा गचागच अपनी उँगलियाँ मेरी चूत में अँदर बाहर करती जा रही थी। अब तो मेरे आनंद की सीमा आसमान तक पहुँच चुकी थी। मैंने अपने चूतड़ जोरों से ऊपर किए और अपनी चूत का पानी छोड़ कर हिचकोले मारते हुए झड़ने लगी। सीमा बोली- शाबास रंडी, झड़ जा जोर से ! मुझे इतना आनंद जीवन में पहले कभी नहीं मिला था। मेरा पूरा बदन पसीने से गीला हो चुका था और इतना जोरदार झड़ने के बाद मैं निढाल हो रही थी। पर सीमा मुझे कहाँ बख्शने वाली थी। उसने अपनी चूत मेरे मुँह से सटा दी और बोली- रीना, मेरी जान, अब मेरी बारी है। मैं उसकी चूत को चाटने लगी और थोड़ी देर बाद अपनी उंगली भी उसकी चूत में डाल कर सीमा को वही मज़ा देने लगी जो उसने मुझे दिया था। सीमा तो पहले से ही गरम हो चुकी थी और मेरी उंगली की रगड़ से कुछ ही देर बाद वह भी झड़ गई। हम दोनों थक कर चूर हो चुके थे और आराम से नंगे ही एक दूसरे से लिपट कर सो गए। इसके बाद तो यह सिलसिला चल पड़ा और हम दोनों अक्सर आपस में ही अपनी प्यास बुझा लेते थे। सीमा के पास एक बैट्री से चलने वाला वाइब्रेटर भी था जिससे हमने काफी मज़े किए (आगे और पीछे- दोनों तरफ से) मेरे पति को हमारी इन हरकतों की भनक लग चुकी थी पर लगा कि वे इस बात से खुश ही थे कि मेरा काम घर पर ही चल जा रहा है और कम से कम मैं बाहरी मर्दों से चुदवाने नहीं जाती हूँ और मेरे पेट में किसी गैर का बच्चा आने का डर भी नहीं था। इस तरह कुछ दिनों के लिए तो मेरे सिर से लँड लेने का भूत उतर गया।……
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कितने_लेते_हो?




मैं तीन महीने पहले अहमदाबाद में एक दिन शाम को घूम रहा था, मैं पैदल ही था, मेरी बाइक घर पर थी। मैं एक राजमार्ग पर एक ढाबे के बाहर खड़ा था।

थोड़ी देर बाद वहाँ पर एक सुन्दर कार मेरे सामने आई तो मैं उस कार को देखता ही रह गया। कार के शीशे काले थे तो अन्दर कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मैं तो कार देख कर खुश हो रहा था।

पाँच मिनट बाद आगे का शीशा नीचे हुआ, अन्दर देखा तो एक सुन्दर भाभी लाल रंग की साड़ी में बैठी थी, बाल खुले थे, होंठों पर लाल लिपस्टिक लगाई हुई थी। वो अप्सरा से भी सुन्दर लग रही थी।

उसकी उम्र लगभग 35 साल होगी पर वो 20-25 साल जैसी लग रही थी।


वह मुझे देख कर हल्के से मुस्कुराई। मुझे लगा कि शायद वो ऐसे ही देख रही है पर वो काफ़ी देर तक मेरी ओर देखती रही।

हिचकिचाहट में मैं नीचे देखने लगा। थोड़ी देर बाद उसने होर्न बजाया तो मैंने उसकी तरफ़ देखा तो उसने मुझे अपने पास बुलाया।

मैं थोड़ा घबरा गया। मैं डरते हुए कार के पास गया।

उसने बोला- कितने लेते हो?

मैं तो सोचने लगा- यह किस विषय में बात कर रही है?

मैंने पूछा- किसके?

तो वो बोली- नाटक मत करो ! जल्दी बताओ ! देर हो रही है !

मैं अभी कुछ सोच कर बोलूं, उससे पहले उसने मुझे अन्दर बैठने को कहा। मैं मन्त्र-मुग्ध सा अन्दर बैठ गया।

फिर वो बोली- अब बताओ कितने लेते हो? पाँच हजार ? या ज्यादा?

मैंने सिर्फ अपना सिर हाँ कहते हुए हिलाया। पर मेरी धड़कन तेज़ हो गई थी, पसीना छुट रहा था।

वो बोली- चलो चलते हैं !

फिर वो सीधा मुझे उसके घर ले गई। तब लगभग नौ बजे थे। उसका घर तो बहुत ही बढ़िया था, एक शानदार बंगला था।

वो बोली- बैठो ! मैं आती हूँ !

थोड़ी देर में वो बाहर आई, मेरे पास बैठ गई और मेरा शर्ट निकलने लगी।

मैंने कहा- क्या कर रही हो?

उसने कहा- पैसे दे रही हूँ।

मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

उसने कहा- क्या-क्या सर्विस देते हो?

मैंने कहा- सभी !

वो खड़ी हुई और अपनी साड़ी उतारने लगी और मुझे भी अपने कपड़े उतारने के लिए कहा।

मेरा मन तो उस पर पहले ही आ गया था, मैंने अपने कपड़े उतार दिए और पूरा नंगा हो गया। उसने भी अपने पूरे कपड़े उतार लिए थे। वो मेरे लंड को देख कर सीधा उसको चूमने लगी। थोड़ी देर तो वो लंड के साथ ही खेलती रही। मेरा लंड पूरा सात इंच का हो गया था, फ़िर वो मेरा लण्ड मुँह में लेकर चूसती रही।

थोड़ी देर में मैं झड़ गया।

अब मुझे अन्दर अपने बेडरूम में ले गई और मुझे लेटा कर उसने अपनी चूत मेरे मुँह पर रख दी। काफ़ी देर तक उसने चूत चटवाई, उसकी चूत पूरी पानी पानी हो गई। फिर वो मेरे ऊपर लेट कर मेरा लंड चूत में डलवा कर पूरी हिलने लगी। मैं भी उसका साथ दे रहा था।

पूरी रात मैं उस भाभी को चोदता रहा। हम दोनों को ही बहुत मज़ा आया। सुबह नौ बजे मैं वहाँ से निकलने की तैयारी कर रहा था तो उसने मुझे छः हजार दिए और कहा- एक हजार ज्यादा दे रही हूँ क्योंकि तुमसे बहुत मज़ा आया है।

थोड़े दिन बाद मुझे पता चला कि मैं उस दिन जहाँ खड़ा था, वो काल-बॉय खड़े होने की जगह थी, वहाँ से औरतें आकर काल-बॉय ले जाती हैं।

उस दिन से मेरा और उसका तय हो गया था कि हफ़्ते में मैं उसके पास तीन दिन जाता था वो मेरे सभी खर्चे और जो भी चीज़ चाहिए वो देती थी।
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Jab Sajan Ne Kholi Angiya......


Mai Letee Thi Woh Leta Tha, Ang-Ang Ko Usne Chooma Tha,
Hothon Se Usne Sun Ree Sakhi, Mere Najuk Ang Ko Jhakjhor Diya
Us Raat Ki Baat Na Poonchh Sakhi, Jab Sajan Ne Kholi Angiya.

मैं लेटी थी वह लेटा था, अंग -अंग को उसने चूसा था,
होठों से उसने सुन री सखी, मेरे अंग -अंग को झकझोर दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

Ek Kiran Ushma Ki Jaise, Mere Tan – Man Me Daud Gai
Maine Bhi Uske Ang Ko Sakhi, Apnee Muthhi Me Kar Kaid Liya
Us Raat Ki Baat Na Poonchh Sakhi, Jab Sajan Ne Kholi Angiya.

एक किरण ऊष्मा की जैसे, मेरे तन _ मन में दौड़ गई
मैंने भी उसके अंग को सखी, अपनी मुट्ठी में कैद किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

Sajan Ne Apne Ang Ko Ree Sakhi, Mere Stan Par Pher Diya
Dono Baundion Par Haule Haule, Ragda To Aag Ko Laga Diya
Us Raat Ki Baat Na Poonchh Sakhi, Jab Sajan Ne Kholi Angiya.

साजन ने अपने अंग को सखी, मेरे स्तन पर फेर दिया
दोनों बोंडियों पर बारी-बारी, रगडा तो आग लगाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

Kamal Se Komal Stan Mere, Wah Bhanwra Sa Nirday Tha Sakhi
Par Us Kathore Aur Nirday Ne, Mujhko Tha Bhaw Bibhor Kiya
Us Raat Ki Baat Na Poonchh Sakhi, Jab Sajan Ne Kholi Angiya.

कहाँ रुई से नाजुक मेरे स्तन, कहाँ वह निर्दय और कठोर सखी
पर उस कठोर और निर्दय ने, मुझको था भाव-बिभोर किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

Wah Nirday Aur Kathore Sakhi, Do Stan Madhya Tha Baith Liya
Maine Bhi Usko Hathon Se, Dono Stan Me Kaid Kiya
Us Raat Ki Baat Na Poonchh Sakhi, Jab Sajan Ne Kholi Angiya.

वह निर्दय और कठोर सखी, दोनों स्तन मध्य बैठ गया
मैंने भी उसको हाथों से, दोनों स्तन से जकड लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

Mansalta Me Wah Kaid Sakhi, Anupam Sukh Ko Tha Dhoondh Raha
Aage Jaata, Pichhe Aaata, Masanlta Meri Raund Diya
Us Raat Ki Baat Na Poonchh Sakhi, Jab Sajan Ne Kholi Angiya.

मांसलता में वह कैद सखी, अनुपम सुख को था ढूंढ रहा
आगे जाता पीछे आता, मसंलता मेरी रौंद दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

Sir Ke Neeche Mere Takiya Tha, Aur Aankhen Thi Darshak Meri
Wah Uttejit – Bibhore Sakhi, Mere Man Ko Tha Bharmay Diya
Us Raat Ki Baat Na Poonchh Sakhi, Jab Sajan Ne Kholi Angiya.

सिर के नीचे मेरे तकिया था, आँखें थी अब दर्शक मेरी
वह उत्तेजित और बिभोर सखी, मेरे मन को भरमाय दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

Maine Garden Ko Utha Sakhi, Usko Muh Mahi Kheech Liya
Mujhko To Do Sukh Mile Sakhi, Usko Jiwha Se Saras Kiya
Us Raat Ki Baat Na Poonchh Sakhi, Jab Sajan Ne Kholi Angiya.

मैंने गर्दन को उठा सखी, उसको मुह मांहि खीच लिया
मुझको तो दो सुख मिले सखी, उसको जिव्हा से सरस किया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

Woh Stan-Ghati Se Utarta Tha, Uuh Gufa Me Jay Samata Tha
Maine Hothon Ka Alingan, Aur Jihwa Ka Use Dular Diya
Us Raat Ki Baat Na Poonchh Sakhi, Jab Sajan Ne Kholi Angiya.

वह दो स्तन मध्य से आता था, और मुंह में जाय समाता था
मैंने होठों की दी जकड़न, और जिह्वा का उसे दुलार दिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

Anubhav Shukh Ka Kuchh Aisa Tha, Mujhko Besudh Kar Baitha Tha
Lagta Tha Yug Yun Hi Beeten, Tham Jaye Samay Jo Beet Gaya
Us Raat Ki Baat Na Poonchh Sakhi, Jab Sajan Ne Kholi Angiya.

अनुभव सुख का कुछ ऐसा था, मुझको बेसुध कर बैठा था
लगता था युग यूँ ही बीतें, थम जाये समय जो बीत गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

Saajan Ne Kai-Kai Aah Bhari, Aur Apni Akhiyan Mund Laein
Mai Besudh Thi Mujhe Pata Nahi, Kab Jwalamukhi Tha Foot Gaya
Us Raat Ki Baat Na Poonchh Sakhi, Jab Sajan Ne Kholi Angiya.

साजन ने कई-कई आह भरीं, और अपनी अखियाँ मूंद लईं
मै बेसुध थी मुझे पता नहीं, कब ज्वालामुखी था फूट गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

Muh, Gaal, Stan, Gardan, Sab Anand Ras Se Tar The Sakhi
Wah Garmahat Wah Shheetalta, Kaise Me Karun Bakhan Sakhi
Mere Man Ke Is Aangan Ko, Wah Kamsudha Se Leep Gaya
Us Raat Ki Baat Na Poonchh Sakhi, Jab Sajan Ne Kholi Angiya.

मुंह, गाल, स्तन, गर्दन, सब आनंद रस से तर थे  सखी
वह गर्माहट वह शीतलता, कैसे मै करूँ बखान सखी
मेरे मन के इस आँगन को, वह कामसुधा से लीप गया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.

Anand Ke Sahbhagi Sajan, Main Pun-Pun Yah Sukh Chahu Sakhi
Bujhi Charam Agan Bujhi Charam Jalan, Maine Adbhut Anand Liya
Us Raat Ki Baat Na Poonchh Sakhi, Jab Sajan Ne Kholi Angiya.

साजन थे आनंद के सहभागी, मैं पुन-पुन यह सुख चाहूँ री सखी
वह मधुर अगन वह मधुर जलन, मैंने तो चरम सुख पाय लिया
उस रात की बात न पूंछ सखी, जब साजन ने खोली अंगिया.
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पति_की_कल्पना





मैं पिछले कुछ दिनों से सोच रही थी कि मैं भी अपना अनुभव आप लोगों को सुनाऊँ।

मेरा नाम रजनी है, 32 साल की हूँ, मेरी शादी 10 साल पहले हुई थी। वैसे तो मैं एक छोटे शहर से हूँ लेकिन शादी के बाद अपने पति के साथ मुंबई में रहती हूँ। मेरे पति रमेश एक कंपनी में सुपरवाइज़र हैं। हम लोग मुंबई में एक चॉल के एक कमरे में रहते हैं।

यह बात करीब नौ साल पहले की हैं, हमारी शादी को करीब डेढ़ साल हो गया था। जैसे कि हर शादीशुदा जोड़े का होता है, शादी के पहले साल में सेक्स के अलावा कुछ भी नहीं सूझता, मेरे पति को और मुझे भी। जब भी मौका मिलता, हम लोग चुदाई में लग जाते थे। उनकी ड्यूटी शिफ्ट में होती थी इसलिए सेक्स के लिए वक़्त की भी कोई पाबन्दी नहीं थी, जब भी उनका मूड होता था, वो शुरू हो जाते थे। कई बार छुट्टी के दिन तो वो मुझे अन्दर कुछ भी पहनने को भी मना करते थे, ताकि चुदाई करने में कोई वक़्त न डालना पड़े।


कभी कभी वो ब्लू फिल्म की सीडी लाते थे, वो देखने के बाद चुदाई और भी जोर से होती थी। शादी से पहले मुझे सेक्स के बारे में इतना कुछ पता नहीं था लेकिन बम्बई में आने के बाद कुछ ज्यादा ही पता चल रहा था। हम लोग कभी चौपाटी या दूसरे किसी समुन्दर किनारे घूमने गए तो वह बैठे जोड़ों को देख कर कुछ अजीब सा लगता था, लेकिन रत में चुदाई के वक़्त उसके बारे में सोचा तो बड़ा मज़ा आता था।

एक साल की ऐसी मस्त सेक्सी जिंदगी के बाद, सब रोजमर्रा जैसा काम सा लगने लगा था। मुझे सेक्स में इतना मज़ा नहीं आ रहा था। हाँ, चुदाई होती थी लेकिन उनका मन रखने के लिए। जब भी वो मूड में होते थे, मैं न नहीं कहती थी, टाँगें फैला कर लेट जाती थी और वो लग जाते थे।

थोड़े दिनों के बाद जब मेरा मूड नहीं होता था तब मैं कभी कभी मना भी करती थी। कभी कभी वो मान जाते थे। वो भी तरह तरह से मुझे गर्म करने की कोशिश करते थे। कभी गर्म होती थी कभी नहीं। कभी कभी चुदाई के वक़्त वो अपने दोस्तों के बारे में, उनकी बीबियों के बारे में बातें करते थे। पहले तो मुझे उन पर बहुत गुस्सा आता था। लेकिन बाद में सोचा कि अगर उनको ऐसी बातों से मज़ा आता हैं तो क्यों नहीं।

उन्हीं दिनों हम लोगो ने एक अंग्रेज़ी मूवी देखी। नाम तो याद नहीं लेकिन उसमें भी मिंया-बीबी होते हैं जिनकी कल्पनाओं की एक सूचि होती हैं और वो एक-एक कल्पना पूरी करते जाते हैं।

उस रात चुदाई के वक़्त रमेश ने कहा- क्यों न हम भी ऐसी एक सूचि बनायें और उसे पूरी करने की कोशिश करें !

पहले तो मुझे यह कुछ अजीब सा लगा लेकिन उनके बार-बार कहने पर मैं मान गई क्योंकि जब मैं भी गर्म मूड में होती हूँ तब ऐसी सब बातें अच्छी लगती हैं।

उन्होंने पूछा- तुम्हारी काल्पनिक लालसाएँ क्या हैं?

लेकिन मैं कुछ भी नहीं बोली। उन्होंने बड़ी कोशिश की लेकिन मैंने कुछ भी नहीं बताया। कई बार पूछने के बाद भी मेरे न बोलने से उन्होंने पूछना छोड़ दिया।

अगली बार जब हम लोग चोदने के बारे में सोच रहे थे तब उन्होंने अपना लण्ड मेरे हाथ में थमाया और कहने लगे- तुम्हें कैसा लगेगा अगर कोई बड़ा मोटा काला लंड तुम्हारे हाथ में हो?

मुझे उनका ऐसा कहना कुछ अजीब सा लगा। कुछ गुस्सा भी आया, सोचा कि यह कैसा मर्द हैं जो दूसरे किसी का लंड अपनी बीबी के हाथ में देने की बात कर रहा है। लेकिन मन ही मन में उस बारे में सोच कर अच्छा भी लगा लेकिन मैंने कुछ भी नहीं बताया।

वो बोलने लगे- तुम्हें इतना सोचने की जरुरत नहीं है। देखो, मैं चाहता हूँ कि मैं दूसरी किसी औरत को चोदूँ। मुझे मेरे बहुत सारे दोस्तों की बीवियाँ अच्छी लगती हैं। और भी पड़ोस वाली बहुत सारी औरतें हैं जिन्हें चोदने की मेरी इच्छा हैं। तो फिर अगर तुमको लगता है कि किसी और से चुदवा लूँ तो उसमे गलत क्या है?

वो जो कह रहे थे ठीक था। लेकिन असल में ऐसा कुछ करना मुझे ठीक नहीं लगता था।

मैंने कहा- तुम्हें जो लगता है, वो लगने दो लेकिन मुझे उसमें कोई रुचि नहीं है।

बात यही पर नहीं रुकी।अगली बार से जब भी मौका मिलता, वो इस बात का जिक्र करते और मैं मना करती। उनको लगता कि मैं थोड़ी खुल जाऊँ। शायद मुझे किसी और से चोदने के ख्याल से उन्हें बड़ा मज़ा आता था। या शायद, अगर मैं किसी और से चुदवाने के लिए तैयार हो गई तो उनको किसी और औरत को चोदने का मौका मिल जायेगा। शायद वो मुझे अपराधी महसूस करवाना चाहते थे पता नहीं।

ऐसे ही बहुत बातों के बाद आखिर में मैं इस बात के लिए मान गई कि मैं कुछ अंग-प्रदर्शन करूँ जब जब मौका मिले और वो भी दूसरी औरतो के बारे में गन्दी बाते करें। अगर मुझे लगा तो मैं भी दूसरे मर्दों के बारे में बोलूँ या दूसरों के बारे में हम लोग बेझिझक बातें करें, दोनों के बीच में कोई बंधन न रहे। संक्षेप में हम एक दूसरे के सामने बेशर्म हो कर बातें करें।

जब कभी हम लोग बाहर घूमने जाते, मैं थोड़ा मेकअप करती, इनके कहने पर मैंने दो तीन गहरे गले के ब्लाऊज़ भी सिला लिए थे। कभी कोई शादी या ऐसी कोई उत्सव में जाते वक़्त मैं भी गहरे गले के ब्लाऊज़ पहनने लगी। मुझे भी मज़ा आने लगा था। अगर कोई मेरी तरफ देखे तो मुझे भी अच्छा लगने लगा था।

शायद रमेश भी इस ख्याल से गर्म होता था। उस रात जब चुदाई होती थी, तब वो बोलता- वो आदमी कैसे घूर कर तुम्हारी तरफ देख रहा था। शायद तुम्हें याद करके अब मुठ मार रहा होगा।

मुझे भी ऐसी बातें अच्छी लगने लगी। मैं भी बोलती- हाँ ! मुझे भी ऐसा ही लगता है। अगर वो वाला आदमी मिल जाये तो उससे मस्त चुदवा लेती ! वो मुझे मस्त चोदता ......!

रमेश की हालत देखने लायक होती थी। शायद वो डर जाता था कि कहीं मैं सच में तो किसी से चुदवा तो नहीं रही? वो लाख छुपाना चाहे लेकिन उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई देता था। लेकिन फिर कभी वो दूसरे मर्द के बारे में बात करने लगे तो मैं एकदम गुस्सा हो जाती थी। उसे भी समझ में नहीं आता कि यह अचानक फिर क्या हो गया? लेकिन तब उसके चेहरे के ऊपर की चिंता गायब दिखाती थी।

मैं भी मन ही मन में किसी और से चुदवाने के बारे में सोचने लगी थी। कोई हट्टा-कट्टा मर्द दिखाई दे तो लगता था- काश यह मुझे मिले और मैं इसके साथ मस्त चुदाई करूँ।

कभी कभी इसी ख्याल में मेरी चूत गीली हो जाती थी मैं भी मौके की तलाश में थी और वो अचानक मेरे हाथ आ गया।

हुआ यूँ कि -

अपनी कंपनी के किसी काम से रमेश आठ दिन के लिए बाहर गया था। इसलिए मैं आठ दिन की भूखी थी। ऊपर से जब भी उसका फ़ोन आता वो ऐसी ही कुछ उल्टी-सीधी बातें करके मूड गर्म बनाता था। मन में बहुत सारी योजनाएँ भी बना कर रखी थी कि जब वो वापस आयेगा तब क्या करुँगी ! कैसे करुँगी !

हम जहाँ पर रहते थे, उसके ठीक सामने वाले बगल वाले घर में ही एक सेवामुक्त परिवार रहता था। वो लोग कहीं बाहर जा रहे थे और जाते समय घर की चाबियाँ मुझे दे गए थे।

उस दिन सुबह ही फ़ोन आया कि उनके कुछ रिश्तेदार आज उनके घर आने वाले हैं और 2-3 दिन के लिए वो उनके घर पर ही रुकेंगे, इसीलिए मैं घर की चाबिया उनके पास सौप दूँ।

शाम को वो लोग आ गए। एक युगल था और उनके साथ एक और लड़का भी था। जोड़े की उम्र करीब 32/30 की होगी और लड़के की करीब 25 साल।

उन्होंने अपना परिचय करवाया। वो लड़का उस आदमी का दोस्त था। उनके किसी रिश्तेदार की शादी थी इसीलिए वो मुंबई आये थे। वो किसी छोटे गाँव से थे। थोड़ी पढ़ाई-लिखाई भी की थी शायद। ऐसा उनके कपड़ों से लग रहा था। लेकिन खेती-बाड़ी करते थे जिसकी वजह से डील-डौल काफी अच्छा था, औरत भी थोड़ी सांवली थी लेकिन काफी सुन्दर थी। उस औरत का नाम सुगन्धा, उसके पति का सागर और उसके दोस्त का नाम राजेश था।

चॉल का कमरा होने की वजह से दो कमरों के बीच में दीवारें इतनी अच्छी नहीं थी। हमारे और बगल वाले कमरे में पार्टीशन के लिए ऊपर वाले हिस्से में लकड़ी की पट्टियाँ इस्तेमाल की गई थी जिसकी वजह से अगर ऊपर वाली हिस्से से बाजू वाले कमरे में झांका जाय तो सब कुछ दिख सकता था। हमारे कमरे में भी एक ऐसी ही लकड़ी की पट्टी थी जो अगर थोड़ी सी सरकाई जाये तो बाजू के कमरे का नजारा साफ़ दिखाई देने लगता था।

उस शाम वो लोग कहीं बाहर घूमने के बाद करीब साढ़े गयारह बजे लौटे। मैं 5-10 मिनट पहले ही बत्ती बंद करके लेटी थी। उनके दरवाजा खोलने की आवाज़ से नींद से जाग गई थी। आपस में थोड़ी बातें करने के बाद वो जोड़ा अंदर के कमरे में चला गया और उस लड़के राजेश ने बाहर के कमरे में अपना बिस्तर लगाया और कुछ कह कर बाहर चला गया।

मैंने सोचा कि कहीं पान खाने गया होगा। जाते समय वो बाहर से ताला लगा कर चला गया ताकि जब वापिस लौटे तब उनको तंग ना करना पड़े।

अब सिर्फ सागर और सुगन्धा ही घर पर थे। पहली बार बम्बई की चमक-दमक देखकर शायद कुछ चहक भी गए थे। बाजु वाले कमरे में जवान युगल के होने के ख्याल से ही मुझे कुछ अजीब सा लगने लगा था। मुझे रहा नहीं गया, लाइट जलाये बगैर ही मैं दीवार के पास गई, पट्टी सरकाई और दूसरी ओर देखने लगी।

सामने का नज़ारा एकदम देखने लायक था। सुगन्धा बिस्तर पर बैठी हुई थी और सागर सामने आइने के सामने खड़ा होकर अपने कपड़े बदल (उतार) रहा था। उसने अपनी शर्ट उतारी, सिर्फ बनियान पहने हुए उसका व्यक्तित्व एकदम आकर्षक लग रहा था। फिर उसने अपनी पैन्ट भी उतारी। सिर्फ अन्डरवीयर और बनियान में उसकी जांघों और बाजूओं की मांसपेशियाँ एकदम नज़र आ रही थी।

दिखने में तो वो साधारण ही था लेकिन शरीर की रचना किसी भी फिल्म हीरो को पीछे छोड़ सकती थी। उसने अपना बनियान भी उतारा । अब वो सिर्फ अन्डरवीयर में ही था। सुगन्धा उसकी तरफ देख रही थी।

उसने उसे बोला- ऐसे क्या देख रही हो? तुम भी कपड़े उतारो और आ जाओ बिस्तर पर !

सुगन्धा ने उसके अन्डरवीयर नीचे खींचते हुए कहा- जरा देखने तो दो अपने मर्द को ! कैसा दिखता है? घर पर कभी देखने का मौका ही नहीं मिलता।

सागर भी उसे कपड़े उतारने के लिए कहने लगा तो सुगन्धा बत्ती बंद करने लगी।

सागर ने कहा- घर में तो हमेशा अँधेरे में ही चुदाई होती है। राजेश भी बाहर गया है, आज तो लाइट जला के ही चुदाई करेंगे।

अब तक उसका लण्ड करीब-करीब खड़ा हो गया था, काला, लम्बा और मोटा लंड। जैसा कि कभी मैंने खवाबों में सोचा था, बिल्कुल वैसा !

कोई भी औरत अगर ऐसा लंड देखेगी तो उसकी नियत ख़राब हो जाएगी।

सुगन्धा ने भी जल्दी जल्दी में अपनी साड़ी उतार दी और सिर्फ पेटीकोट और ब्लाऊज़ में बिस्तर पर बैठ गई। सागर अपना लंड खड़ा करके खड़ा था। मेरी आँखो से 5-6 फीट की दूरी पर सागर का लंड मेरे सामने था और उसका पीछे का हिस्सा पीछे वाले आइने में एकदम साफ नज़र आ रहा था।

क्या नज़ारा था ! ऐसा लग रहा था कि दीवार तोड़ कर उस कमरे में चली जाऊँ और उसका लंड पकड़ कर चूस लूँ !

शायद मेरे दिल की बात सुगन्धा को सुनाई दे गई। सागर उसकी तरफ बढ़ा और उसने अपने लंड का सुपारा सुगन्धा के मुँह में दे दिया। सुगन्धा भी बड़े प्यार से जोश में आकर उसका लंड आइसक्रीम की तरह चूसने लगी थी।

थोड़ी देर बाद दोनों 69 की अवस्था में आ गए। सागर बिस्तर पर लेट गया, सुगन्धा की टाँगे फैलाई और उसकी चूत में जीभ डाल कर चाटने लगा।

आग दोनों तरफ एकदम बराबर लगी थी।

सुगन्धा अजीब अजीब सी आवाज़ें निकाल रही थी- आह आह ...... उम्म्म ! बड़ा मज़ा आ रहा है ! मेरे चोदू पति ! बड़ा मज़ा आ रहा है ! और जोर से और जोर से चाट...... कुत्ते की तरह चाट डाल मेरी चूत ! खा ले मेरी क्रीम ! बड़ा मज़ा आ रहा हैं.......

सुगन्धा की ये बातें सुनकर सागर और भी गर्म हो गया। वो भी जोश में आ गया कहने लगा- गाँव में तो एकदम भोली भली बन कर रहती थी, कभी कुछ भी नहीं बोलती थी। एक दिन शहर में क्या घूमी तो तो एकदम कुतिया बन गई है। मुझे कुत्ते की तरह चाटने को कहती है? मेरी चुद्दक्कड़ रानी देख, कितनी गीली हो गई हैं तेरी यह मस्त चूत ! देख कैसी क्रीम निकल रही है। शहर में आने के बाद तू इतनी चुद्दक्कड़ बन जाएगी, यह अगर पहले पता होता तो सुहागरात मनाने के लिए शहर ही आते। पहले दिन से ही मस्त होकर चुदाई करते। कोई बात नहीं देर से पता चला लेकिन दुरुस्त है । अब देखम तेरी चूत का कैसा हाल बनाता हूँ। आज रात इतना चोदूँगा कि तुझे जिंदगी भर याद रहेगा .......

सुगन्धा- फिर देर किस बात की। आ जा ! आ जा ! चोद मुझे ! फाड़ ड़ाल मेरी चूत ! चोद-चोद कर मेरे दाने की भुर्जी बना दे। डाल दे अपना काला मोटा लंड मेरी गर्म गर्म चूत में ! रात भर मेरी चूत से लंड मत निकालना ! देख कितनी गर्म हो गई है मेरी चूत। तेरा लण्ड आलू की तरह उबल के पक जायेगा मेरी चूत में.......। आह्ह आह आ जा मेरे चोदू ...... दिखा दे अपनी मर्दानगी.....मेरी चूत की प्यास बुझा ! कब से प्यासी है मेरी चूत तेरा काला मोटा लण्ड अन्दर लेने के लिए ..... सिर्फ मुँह से ही क्या कर रहा है? चोद मुझे ! मेरी चूत फाड़ दे !

सुगन्धा और जोर जोर से लंड चूसने लगी। ऐसा लग रहा था कि रही पूरा लंड निगल तो नहीं जाएगी?

वैसे सागर का लंड लम्बा होने के साथ साथ बड़ी भी था फिर भी सुगन्धा इतनी कामुक हो चुकी थी की करीबन पूरा ही मुँह में ले रही थी। सुगन्धा का ऐसा रूप सागर शायद पहली बार देख रहा था। सुगन्धा के मन के कामुक ख्याल उसके चेहरे पर साफ़ नज़र आ रहे थे और सागर का अचरज भी। सागर- तू तो एकदम चुद्दक्कड़ की तरह बात कर रही है। तेरी ऐसी बातें सुनके मैं तो एकदम परेशान हो गया हूँ ! तू सुगन्धा ही है या कोई और?

कोई और क्यों चाहिए तुझे? मैं हूँ ना ! तुम मर्द भी बड़े कमीने होते हो ! घर में जवान बीवी होते हुए भी दूसरी औरतों के बारे में सोचते हो। देख देख ! मेरी तरफ़ गौर से देख ! आज बल्ब जलाया है तो करीब से देख ! देख कैसी मस्त है तेरी चुद्दक्कड़ बीवी ! देख कितनी मस्त हैं उसकी चूत। आ चोद मुझे जितनी तुम्हारी मर्ज़ी उतना चोद ! दिखा कितना जोश है तेरे इस मोटे काले लंड में ! आज इतनी देर तक चुदवाना चाहती हूँ कि दूसरी औरतों की तरफ देखना ही क्या, उनके बारे में सोचना भी भूल जायेगा .....

सुगन्धा की ये बाते सुन कर मुझे लग रहा था कि जैसे वो मेरे मन की बात बोल रही है। जब भी रमेश मुझे चोदते समय दूसरी किसी औरत के बारे में बोलता था, मुझे भी लगता कि घर पर मेरे जैसी जवान और सेक्सी बीवी होते हुए भी ....... मैं भी मन ही मन में किसी और मर्द के बारे में सोचने लगती थी। आज सागर और राजेश को देखने के बाद लगा कि ऐसा मर्द होना चाहिए जिससे मैं चुदवाना चाहूंगी। कितना मज़ा आयेगा वाह !

सोच कर ही मेरी चूत पूरी तरह से गीली हो गई। मैं मन ही मन में खुद को सुगन्धा की जगह पर देखने लगी।

सुगन्धा की ये भड़काऊ बातें सुनकर सागर भी जोश में आ गया, उसने सुगन्धा को पीठ के बल लिटा कर उसकी दोनों टाँगें अपने कंधों पर डाल दी, लंड का सुपारा उसकी चूत के मुँह पर रख दिया और जोर का धक्का दिया।

एक ही झटके में उसका पूरा लंड सुगन्धा की चूत में चला गया। सुगन्धा के मुँह से थोड़ी सी आह निकली लेकिन अगले ही पल में उसने सागर को जकड़ लिया। ऐसा लग रहा था कि अगर उसका बस चले, सागर को पूरा ही अपने अन्दर समां ले।

वो भी गांड उठा-उठा कर सागर के धक्कों का साथ देने लगी। सागर के धक्कों के साथ में चूत में से आनेवाली पचक पचक की आवाज़ भी साफ़ सुनाई दे रही थी । ऐसे ही 2-3 मिनट तक धक्के लगाने के बाद सागर ने दो तीन झटके दिए और पानी निकाल दिया। सुगन्धा अब तक झड़ी नहीं थी। सागर के लंड में का जोश ख़त्म होने लगा था। झटके से सुगन्धा ने सागर को नीचे लिटाया और खुद उसके लंड पर बैठ गई, लंड हाथ में पकड़ कर अपनी चूत में डाल लिया और जोर जोर से घिसने लगी।

अपना काम हो गया तो एकदम मुर्झा गए? मुझे कौन ठंडा करेगा? मैं छोडूंगी नहीं ........

ऐसे कहकर करीब 5 मिनट धक्के देने के बाद वो भी झड़ गई, चुदाई के बाद की संतुष्टि उसके चेहरे पर साफ़ नज़र आ रही थी।

मेरी हालत एकदम उल्टी थी।

आँखों के सामने चुदाई का यह सजीव दृश्य देखने के बाद में भावनाएँ और भी भड़क उठी थी। अच्छे बुरे के बारे में सोचना बंद हो गया था, मन में सिर्फ एक ही ख्याल था कि किसी सागर या राजेश जैसे आदमी से कैसे भी चुदवा लूँ?


मेरे मन की इच्छा शायद पूरी होने वाली थी। मेरा ध्यान उनके सामने वाले कमरे की तरफ गया। लाइट जल रही थी। शायद राजेश इसी दरमियान लौटा था और उसने भी यह चुदाई का नज़ारा देखा था। शायद किसी छेद में से वहाँ का भी नजारा साफ दिखाई देता था।

राजेश अपना लंड पैंट से बाहर निकाल कर हिला रहा था शायद। जैसे ही मुझे वो पूरा दिखाई दिया, मैं तो चौंक ही गई। इसका तो सागर से भी बड़ा था- काला, लम्बा और मोटा .....।

काश ! मैं मन ही मन में सोचने लगी और ठान भी लिया कि कैसे भी करके इसका मज़ा तो लेना ही चाहिए।

मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। मन की बेचैनी दूर करने के लिए मैं दरवाजा खोल कर बाहर गलियारे में आ गई, सोचा कि थोड़ी बाहर की ठंडी हवा ले लूँ, शायद मन थोड़ा सा शांत हो जाये। लेकिन, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। संजोग पर मेरा आज तक विश्वास नहीं था लेकिन संजोग की बात या शायद मेरे जैसे ही ख्याल राजेश के मन में भी थे, वो भी दरवाजा खोलकर बाहर आ गया। उसने निकर पहन रखी थी, उसमें उसका बदन एकदम मस्त लग रहा था। एकदम वो दबंग के विलेन की तरह.......

मैं उसकी तरफ देख कर मुस्कराई। मैंने गाऊन पहना था। अन्दर पेटीकोट नहीं था, सिर्फ ब्रा और पेंटी।

शायद उसमें मेरा शरीर काफी नज़र आ रहा था। रात काफ़ी गहरा चुकी थी। ऐसे ही कुछ इधर उधर की बातें की और मैं अन्दर जाने लगी।

तभी राजेश ने कहा- भाभी, एक ग्लास पानी मिल सकता है? सागर और भाभी अन्दर सो रहे होंगे और इस वक़्त उन्हें जगाना ठीक नहीं इसलिए....

मैंने कहा- क्यों नहीं ! आप अन्दर तो आईये। मुझे भी नींद नहीं आ रही थी, कॉफी पीने का दिल कर रहा था। आईये ! आपके लिए भी कॉफ़ी बनाती हूँ !

उसने थोड़ी भी देर नहीं लगाई, अन्दर आ गया और सोफे पर बैठ गया।

मैंने पानी का ग्लास ला कर सामने वाली तिपाई पर रख दिया। जब मैं झुकी तब मेरे चूचे उसे साफ़ दिखाई दिए होंगे।

उसके चहरे पर एक तरह की चाहत दिखाई दी। कमरे में कुछ चीज़े इधर-उधर बिखरी थी, मैं झुक कर उन्हें ठीक करने लगी ताकि मेरे चूचे उसे और भी साफ़ तरह उसे दिखाई दें। उसका लंड अब पूरी तरह से खड़ा हो गया था। उसकी निकर में से वो अब साफ़ नज़र आ रहा था।

मैं जल्दी अंदर गई और कॉफ़ी ले आई। ज्यादा कुछ बात किये बगैर ही दोनों कॉफ़ी पीने लगे।

राजेश ने पूछा- आपके पति कहीं बाहर काम करते हैं क्या?

मैंने बताया- नहीं, किसी काम के लिए बाहर गए हैं हफ्ते भर से, आज लौटने वाले थे लेकिन .......

इस मौके का फायदा उठाने के लिए शायद, राजेश बोला- साथ में रहने की आदत होने पर ऐसे दूर रहना मुश्किल होता ना?

मैं यह बात पहले बहुत बार सुन चुकी थी। जब भी याहू पर चैटिंग करती और बताती कि पति बाहर गए हैं तो सामने वाला यह जरूर कहता (जब भी ये रात की पारी में काम पर रहते, मैं कभी कभी याहू पर चैट करती थी, यह भी मुझे मेरे पति ने ही सिखाया था।)

मैंने पूछा- तुम्हारी शादी हुई है?

उसने कहा- नहीं !

मैंने पूछा- तुम्हारी उम्र क्या है?

तो वो बोला- 25 साल।

मैं मुस्कराते हुए बोली- तब तो तुम्हें भी बड़ी मुश्किल होती होगी? अकेले रात गुजरते हुए, और वो भी जब आजू-बाजू के माहौल में जब कोई भड़काने वाले दृश्य दिखाई दे तब...!

कॉफ़ी का कप लौटाते वक़्त उसके हाथ का स्पर्श मुझे हुआ। जैसे शरीर में बिजली का करंट दौड़ गया।

मैंने कप वहीं पर रख दिया और सामने का दरवाजा बन्द कर दिया। अगले पल मैं उसकी बाहों में थी। उसने मुझे जोर से कस लिया और बेसब्री से मुझे चूमने लगा। मेरी भी हालत कुछ अलग नहीं थी। मैं भी सालों की प्यासी की तरह उसका साथ देने लगी थी। एक पराये मर्द की बाहों में होने का अनुभव कुछ और ही था।

उसने कहा- भाभी, तुम बहुत सुंदर हो। कब से बस अपने दिल की बात दिल में रख कर घूम रहा था। बहुत दिल करता था कि आपसे आकर दोस्ती की बात करूँ लेकिन हिम्मत ही नहीं होती थी। मेरी नज़र में तुम बहुत ही खूबसूरत और सेक्सी औरत हो और मैं हमेशा तुम्हारे पति को बहुत ही खुशनसीब समझता हूँ जिसे तुम्हारे जैसे औरत मिली है।

यह सुनकर मैं बहुत खुश हुई। पता था यह मुझे मक्खन लगा रहा है, मैंने भी कहा- जबसे तुम यहाँ आए हो, तबसे तुम्हारे बारे में सोच रही थी। मैं भी चाहती थी कि तुम्हारे जैसा कोई तगड़ा जवान मिले जो मेरी सारी इच्छायें पूरी करे !

उसने मेरे बालों में हाथ फेरना शुरु किया और उसके कान पर मैंने प्यार से अपनी जीभ फेर दी। मैं भी अब काफ़ी गर्म हो चुकी थी। मैंने उसकी कमीज़ में हाथ दे दिया और उसके शरीर को ज़ोर से अपने हाथों से पकड़ लिया। उसने धीरे धीरे मेरे गाउन में हाथ डाला और अपना चेहरा गाउन के ऊपर रख दिया।

मैंने कहा - ज़रा आराम से काम लो ! यह सब तुम्हें ही मिलेगा !

उसने मेरा गाउन उतार दिया और मैंने उसकी निकर और कमीज़ भी निकाल दी। वह मुझे उठा कर अन्दर ले गया, बिस्तर पर लिटा दिया, मेरी ब्रा निकाल दी और मेरे चूचे चूसने लगा। मैं भी अब उसका पूरा देने लगी थी, मैंने उसके लण्ड को हाथ में पकड़ा, ज़ोर से दबा दिया और हिलाने लगी।

राजेश बोला- इतनी ज़ोर से हिलाओगी तो सब पूरा पानी अभी निकल जायेगा !

उसने मेरे स्तन चूसते-चूसते अपने हाथ से मेरी पैन्टी निकाल दी और हाथ मेरी चूत पर फेरना शुरू कर दिया।

मैंने उसका अंडरवीयर निकाल दिया और उसके लण्ड को प्यार से सहलाने लगी। उसने मेरे चूचों से अपना मुँह हटाया और मेरी नाभि को चाटना शुरू किया। मैं और कुछ ज्यादा ही गर्म हो गई थी। फिर उसने धीरे धीरे अपना मुँह मेरी चूत पर रख दिया और चाटने लगा। मेरी सिसकी निकल गई और मैंने अपनी टाँगें फैला दी जिससे वो मेरी चूत को अच्छी तरह से चाट सके।

थोड़ी देर में मैंने भी उसके लंड को पकड़ लिया और जोर जोर से चूसने लगी। अपने पति का लंड चूसते समय बहुत बार मैं कतराती थी लेकिन अब क्या हुआ था पता नहीं, मेरी पूरी लाज शर्म कहीं खो गई थी। मैं लॉलीपोप की तरह उसका लंड मज़े लेकर चूसती जा रही थी। वो इतना मोटा और गर्म था कि लगता था किसी भी वक़्त पानी छोड़ देगा।

वो जोर जोर से सिसकारियाँ ले रहा था, बोला- अब से यह तुम्हारा है, इसका जो भी और जैसे भी इस्तेमाल करना है तुम कर सकती हो। मेरी बरसों की आग को तुम ही बुझा सकती हो।

उसने अब अपना लण्ड मेरे मुँह के और अन्दर धकेल दिया मैं और जोर जोर से चाटने लगी। वो एक बार फिर से मेरी की चूत चाटने लगा और अपने जीभ मेरी चूत में और भी जल्दी जल्दी और अन्दर-अन्दर डालने लगा।

मैंने उसका लण्ड मुँह से बाहर निकाला और बोली- अब मुझसे नहीं रहा जाता, अब डाल दो इसे मेरे अंदर और मेरी प्यास बुझा दो। मुझे शांत कर दो मेरे यार ! मेरे ख्यालों के राजा ! मेरा पति भी मुझे तेरे जैसे ही हट्टे कटते जवान से चुदवाना चाहता था ! चोद डालो मेरे राजा !

उसने मुझे ठीक तरह से नीचे लिटाया, मेरी टाँगें फैलाई, अपने लण्ड का सुपारा मेरी चूत पर रखा और एक धक्के में अपना काला मोटा लंड मेरी चूत में आधा घुसा दिया। काफी बड़ा था। मेरी तो जैसे चीख सी निकल गई, मैं बोली- ज़रा धीरे धीरे मेरे राजा ! इसका मज़ा लेना है तो धीरे धीरे इसे अंदर डालो और फिर जब पूरा चला जाए फिर ज़ोर ज़ोर से इसे अंदर बाहर करो !

उसने अपना लंड धीरे-धीरे मेरी चूत में डाला और फ़िर एक ज़ोर से धक्का पेल दिया और उसका पूरा मोटा लंड मेरी चूत में चला गया।

वो बोला- आह आह उउई ऊफफफ्फ़ हमम्म्म आआ ! क्या मस्त चूत है तेरी ! मेरी रानी ! एकदम रबर की तरह मेरे लंड पर चिपक गई है ! बहुत खुजली हो रही थी ना इसलिए झुक-झुक कर अपने मम्मे दिखा रही थी? कैसा लग रहा है? ले काला मोटा लण्ड? अब से जब भी चुदती होगी तब मुझे याद कर लेना, अपने आप गर्म हो जाएगी तेरी यह मस्त चूत ! लगता है कि फाड़ डालूँ तेरी यह मस्त चूत.....

मैं बोली- यह चूत तुम्हारी है, फाड़ दो इसे ! आअहह ऊऊऊऊओ आआहह ज़ोर से और ज़ोर से !

उसने अपनी गति बढ़ा दी और ज़ोर-ज़ोर से मेरी चूत पर वार करने लगा। उसने मेरे चुचूक मुँह में लिए और अपनी गति और भी बढ़ा दी। लगभग दस मिनट के बाद हम दोनों की आह निकली और हम दोनों झड़ गये। मैंने उसे जोर से चूम लिया और हम लोग बाथरूम में साफ होने के लिए चले गये। थोड़ी देर में राजेश और मैंने फिर से चूमना शुरू किया और इस बार मैंने पहले उसका लण्ड अपने मुँह में लेकर चूसना शुरू किया।

वो पांच मिनट बाद में फिर से तैयार हो गया चुदाई करने के लिए।

उसने इस बार मुझे उल्टा लिटा दिया और मेरे बूब्स को पीछे से पकड़ कर अपना लण्ड मेरी चूत में डाल दिया। चोदते समय वो मेरी गांड के ऊपर भी छोटे बड़े चांटे लगा रहा था। क्या बताऊँ कितना मज़ा आ रहा था। इस अवस्था में लंड सीधा चूत में घुस जाता है और औरत को बहुत ही मज़ा आता है। मेरी गांड का स्पर्श उसके पेट के नीचे वाले हिस्से को हो रहा था उससे उसे और भी गर्मी आ रही थी।

वो बोल रहा था- कितनी मस्त है तेरी गांड, लगता है कच्चे आम की तरह उसे चबा डालूँ !

और अपनी उंगलियाँ मेरी गांड पर दबाने लगा। उसकी इस हरकत से मेरी चीख निकल गई, मैं बोली- आहह उउफफफफ्फ़ अफ ऊहह आआ ऊ हह आअहह बहुत दर्द हो रहा है, ऐसे लगता है कि तुमने अपना लंड सीधा मेरे पेट में ही घुसा दिया है। ज़रा धीरे धीरे करो ना ! आहह बहुत मज़ा आ रहा है, अब तुम अपनी स्पीड बढ़ा सकते हो।

उसने मेरी कमर पकड़ कर पेलना शुरू किया और अपने घस्से ज़ोर ज़ोर से मारने लगा लेकिन मेरा झड़ने का कोई हिसाब नहीं बन रहा था। मैंने उसे कहा- लगता है कि मुझे समय लगेगा झड़ने के लिये !

वो बोला - कोई बात नहीं ! तुम लगी रहो, जब समय आएगा तब झड़ जाना !

उसने अब मेरी गांड के नीचे एक तकिया लगाया और उसके ऊपर चढ़ गया। मेरी सिसकारियाँ अब तेज़ हो रही थी, मैंने काफ़ी कोशिश की पर मेरी चूत झड़ने को तैयार नहीं थी । फिर मैंने सोचा कि अगर उसका लंड एक कसी सी चीज़ में जाए तो शायद और मज़ा आए और मैं झड़ जाऊँ । मैंने उसे अपना लंड मेरे गांड के ऊपर फेरने के लिए कहा।

राजेश शायद मेरा इशारा समझ रहा था, वो बोला- क्या इरादा है? गाण्ड मरवाने का का इरादा है क्या?

मैंने कहा- हाँ यह तो तुम्हारी ही है लेकिन ज़रा प्यार से इस्तेमाल करना क्योंकि यह अभी बिल्कुल कुँवारी है।

उसने झटक से उसके गांड पर सुपारा रखा और ज़ोर से पेल दिया। उसका मोटा लंड मेरी गांड में सिर्फ़ दो इन्च जाकर फँस गया और मेरी चीख निकल गई, बोली- उफ़फ्फ़ आहह ! निकाल दो इसे बाहर ! बहुत दर्द हो रहा है, मर गई ...आये ए हह आ आ आ !

उसने अपना लंड घबराकर बाहर निकाला और फिर धीरे धीरे उसे अंदर डालना शुरू किया, साथ में मैं अपने हाथ से मेरे मम्मे दबा रहा था जिससे गर्मी और बढ़ती जा रही थी। उसने लगभग चार इन्च लण्ड घुसा दिया था और फिर एक बार ज़ोर से झटका मारा और पूरा का पूरा लौड़ा मेरी गाण्ड में घुस गया। अब मैं भी उसका फिर से भरपूर साथ दे रही थी। उसने मुझे ज़ोर ज़ोर से पेलना शुरू किया और मेरी कसी गांड में उसका लंड बहुत मज़े से चुदाई कर रहा था। फिर वो कुछ देर बाद मेरी गांड में ही झड़ गया। मेरी जिंदगी में वो पहला गांड मरवाने का अनुभव था।

मैंने कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि असल में मुझे कोई ऐसा पराया मर्द मिलेगा जो मेरी इस तरह से चुदाई करेगा।

जब भी मेरे पति दूसरे आदमी से चुदवाने की बात करते थे तब सिर्फ सोचती थी कि हाँ, ख्यालों में ठीक है लेकिन असल में कभी नहीं होगा।

अब मुझे खुद पर यकीन नहीं हो रहा है कि यह ख्वाब था या असलियत?

दो दिन के बाद पति लौट आये आने के बाद उन्होंने भी मस्त चुदाई की लेकिन यह बात उनको नहीं बताई।

जैसे कि राजेश ने रहा था, चुदाई के वक़्त राजेश को याद किया और चुदाई का मज़ा और भी बढ़ गया। मेरे पति भी शायद परेशान हो गए होगे यह सोचकर कि इसे क्या हो गया अचानक ? यह इतनी कामुक कैसे हो गई ?

अब जब भी वो अदला-बदली की कल्पना के बारे में बोलते हैं तब सोचती हूँ कि हाँ कर दूँ !



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